सारी रात घड़ी के कांटों में उलझी रही। आसपास एक घनी चुप्पी ने मौका पाकर अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया था.... पर इस चुप्पी में वो शांति न थी जिसमें सुकून हो; बल्कि दिल दहलाने वाला ख़ौफ़ था।
नींद आज छुट्टी पर थी तो ये सन्नाटा भी मन पर हावी होने की कोशिश में लगा था। हालांकि मुझे शांत और एकांत रहना पसंद है पर ऐसे माहौल की तो कभी कल्पना भी न की थी। मम्मा की हालत अब बेहतर है, बस इस बात ने मन को संभाले हुआ था।
इस बंद कमरे में परेशान और तन्हा देखकर चांद ने अपनी चांदनी मेरे पास भेज दी, बिल्कुल मेरे बेड तक। देखा तो खिड़की से कुछ दूर ही मंद-मंद मुस्काता दिखाई दिया।
अच्छा.... तो इसीलिए माएं तुम्हें चंदा मामा बताती हैं।
मैंने चांद को दिल से शुक्रिया कहा।
घड़ी की सुईयों को कदम-दर-कदम चलना सिखाते- सिखाते मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि कब चंद्रमा अपने रथ की बागडोर सूरज के हाथों में थमा गया। पहले तो उस उजाले में फर्क ही नहीं कर पाई पर जब गर्माहट महसूस हुई तो एहसास हुआ कि दिन काफ़ी चढ़ आया है।
सुबह के नाश्ते के साथ ख़बर आई कि दोपहर तक मेरी रिपोर्ट आ जाएगी पर मैं इस बात से निर्लिप्त ही रही। बीच में प्राची सिस्टर भी देखने आई थीं कि कहीं मुझे कोई सिम्पटम तो नहीं.... लेकिन मैं तो अच्छी - भली स्वस्थ्य थी। मेरी उलझन से वाकिफ़ भी थीं तो बिना पूछे ही मम्मा के बारे में बताने लगीं कि वो कल से स्टेबल हैं। फ़ीवर भी नहीं है और आक्सीजन लेवल भी ठीक है। अगर ऐसे ही रिस्पांड करती रहीं तो बहुत जल्द ठीक होकर डिस्चार्ज हो जाएंगी। मैंने उनकी शुभकामना के लिए आभार व्यक्त किया और फिर से अकेलेपन को साथ बिठा लिया।
मम्मा और मैं भले ही अलग-अगल कमरों में हों पर आस-पास होने का एहसास भी बहुत होता है। ईश्वर की कृपा से वो अब बेहतर हैं तो तसल्ली भी है।
आज अरसे बाद दिल किया तो यूं ही बैठे-बैठे मैंने बैग से फ़ोन निकाला और एफ़ एम पर विविध भारती ट्यून किया। पुराने गाने बहुत पसंद हैं मुझे। हमेशा से मेरा इस बात को लेकर मज़ाक उड़ते थे सब कि मैं बाबा आदम के ज़माने की हूँ इसलिये गाने भी उसी ज़माने के सुनती हूँ। ख़ैर, मुझे इस बात से कभी कोई फ़र्क नहीं पड़ा। वैसे ये शौक मुझे अनाथाश्रम की वार्डन शोभा मैम से लगा था। वो अक्सर रेडियो पर विविध भारती सुनती थीं और मैं खिड़की के पीछे छुपकर कभी फ़रमाइशी गीतों के प्रोग्राम सुनती, तो कभी हवामहल।
मंजिलें अपनी जगह हैं, रास्ते अपनी जगह की धुन के साथ आज वही पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो चली थीं कि प्राची सिस्टर रूम में दाख़िल हुईं।
अनाहिता, तुम्हारी रिपोर्ट निगेटिव आई है। जल्दी से तैयार हो जाओ। एंबुलेंस तुम्ह घर छोड़ आएगी।
एक रत्ती खुशी नहीं हुई मुझे रिपोर्ट निगेटिव आने की। काश कि मैं भी पाॅज़िटिव होती.... यहीं रह जाती। फ़िर मैं और मम्मा साथ में घर जाते।
सिस्टर, क्या मैं जाने से पहले मम्मा से मिल सकती हूँ...!!!
नाॅट अलाऊड अनाहिता और कोई बेवकूफी भी मत करना। यकीन करो, दीदी ठीक हैं। तुम जब भी चाहो मुझे काॅल करके उनकी हाल-ख़बर ले सकती हो। ओके....!!!
मैंने सहमति में सर हिला दिया।
गुड गर्ल...
बहुत जी चाह रहा था कि एक बार दरवाज़े से ही देख लूँ मम्मा को... पर नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से किसी को परेशानी हो इसलिये भारी दिल से इस रूम को अलविदा किया जहां मुझे एक नयी ज़िन्दगी मिली, मेरी मम्मा मिली। सबसे ज्यादा शुक्रिया किया घड़ी का.... जिसके इर्द-गिर्द मेरा पूरा दिन बीतता था।
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सड़कें वीरान थीं, ग़मज़दा थीं। जिनसे नुक्कड़ और चौराहों की जगमग थी, आज वो नहीं थे.... क्या पता कभी लौटेंगे भी या नहीं। सजीव और निर्जीव की परिभाषा कितनी गलत है !!!!
सायरन बजाती एंबुलेंस ने आधे घंटे में रूम तक पहुंचा दिया। मकान मालिक भले लोग थे, देखते ही हाल-चाल लिया। महामारी के डर से दूर खड़े थे फिर भी साथ थे। मेरा कमरा बाहर की तरफ़ था इसलिए वो थोड़े मुतमईन भी थे। दरवाज़े पर लगा छोटा-सा ताला मेरे इंतज़ार में बैठा था। मैंने वो इंतज़ार ख़त्म किया और पहला कदम बढ़ाया।
दस दिनों से बंद कमरे से जैसे तूफ़ान गुज़रा हो। खाली मैदान पाकर चूहों ने खूब मनमानी की थी या ये कहें कि तांडव किया था। मजाल है कोई भी चीज़ जगह पर हो। इस अस्त-व्यस्त कमरे में मैं बस एक ही चीज़ ढूंढ रही थी। काफ़ी मशक्कत के बाद आलमारी के पीछे कुछ दिखाई दिया। बहुत मुश्किल से हाथ पहुंचे वहां तक और आख़िरकार मैंने उसे खींच ही लिया।
मेरी जानू..... उसके मिलने की खुशी फ़ौरन ही गम़ में तब्दील हो गई। बुरी तरह से कुतर डाला था चूहों ने मेरी जानू को। अपनी एकमात्र साथी को इस हालत में देखकर मैं रो पड़ी।
ऐसा क्यूँ हो रहा है मेरे साथ... क्यों वो हर शय मुझसे दूर हो जा रही है जो मुझे अजीज़ है। कभी किसी का दिल नहीं दुखाया, किसी का बुरा नहीं सोचा। आज तक कभी ऊंची आवाज़ में बात भी नहीं की किसी से फिर क्यों...????
बिस्तर से टेक लगाए मैं देर तक सुबकती रही। जगह - जगह से रूई निकल गई थी। मैं बाहर निकली थोड़ी सी रूई को फिर से उसमें भरने लगी। तभी मेरा हाथ किसी चीज़ से छू गया। मुझे लगा शायद चूहों ने कुछ भर दिया हो। मैंने उसे बाहर निकाला, ये एक छोटा-सा पैकेट था।
ये कहाँ से आया.... मेरी पास तो ऐसी कोई चीज़ नहीं है। मैंने उत्सुकता से उसे खोलना शुरू किया। वो एक लेटर था जिसे इस मज़बूत पैकेट में बहुत एहतियात के साथ रखा गया था। मैंने पीले पड़ चुके काग़ज़ पर लिखी इबारत को पढ़ना शुरू किया।
माई लिटिल प्रिंसेज.....
शेष अगले भाग में
✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️