Wednesday 19 May 2021

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 10) 🌺 🌺

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तुम्हें पता भी है, तुम क्या बोल रही हो किरन...!!! 

कोई अंदाज़ा है कि इसका असर क्या हो सकता है...??? 

जानती हूँ मेघना दीदी इसीलिए कह रही हूँ। एक बार खुद को अनाहिता की जगह रखकर देखिये। क्या आपका दिल गवाही देता है इस बात के लिए..!!!

दिल से सोचोगी तो कभी किसी मरीज़ की ड्रेसिंग कर पाओगी.... किसी बच्चे को इंजेक्शन लगा पाओगी या किसी गर्भवती महिला को डिलीवरी के वक्त दर्द लेने को कह पाओगी...???? 

जानते हुए भी कि इन सिचुएशन में दर्द होता है फिर भी हम ये करते हैं क्योंकि तत्काल में भले ही उन्हें तकलीफ़ होगी पर उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए यही सही है। यही हमारा काम है, यही हमारी सेवा है जहां हमें सिर्फ़ दिल नहीं, दिमाग से भी काम लेना पड़ता है। 

मैं समझ रही हूँ दीदी लेकिन आप ये भी तो सोचिये कि ईश्वर न करे ममता सिस्टर को कुछ हो गया और अनाहिता को बाद में पता चला कि हमने उससे झूूठ बोला था तो कैसे नज़रें मिलाएंगे उससे, कैसे देंगे उसके सवालों के जवाब... आज तो किसी तरह संभाल लिया पर तब क्या करेंगे ???

चलो मान ली तुम्हारी बात, बता दिया अनाहिता को कि दो कमरे छोड़कर उसकी माँ कोरोना से जंग लड़ रही है.... बताओ क्या रोक पाएंगे हम उसे ममता दीदी से मिलने से ??? मान लो कि अनाहिता की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव हो और दीदी के काॅन्टेक्ट में आने पर उसे संक्रमण हो गया तो इस गलती का भार किसके सर होगा....!!! 

किरन, तुम सोचती होगी कि मैं कितनी संवेदनहीन हूँ पर क्या करूँ.... मैं एक बच्चे को उसकी माँ से दूर रख सकती हूँ लेकिन उस बच्चे की जान ख़तरे में नहीं डाल सकती। 

उस कांच की दीवार में बनी छोटी सी गोल खिड़की से छनकर आती आवाज़ सुनकर मैं हतप्रभ थी। कोई रिश्ता नहीं है इनका मुझसे पर मेरी सुरक्षा और भावनाओं को लेकर ये लोग कितने गंभीर हैं..... 

ख़ैर उनकी बातों से मुझे इतना तो पता चल ही चुका था कि माँ यहीं-कहीं हैं। उनसे मिलने की उत्सुकता अब उफ़ान पर थी। तभी ड्यूटी रूम में फ़िर से आवाज़ों की हलचल हुई।  

मेघना सिस्टर, मैं ममता दीदी को एक बार फिर देख आती हूँ और बाकी के मरीज़ों का भी एक राउंड ले लेती हूँ। उसके बाद इस पीपीई को उतार दूंगी, बहुत गर्मी लगती है इसमें। 

ठीक है, संभाल कर जाना.... पर ध्यान रहे, अनाहिता को पता न चले इस बारे में। 

मैं वहाँ से निकलकर दरवाज़े की ओट लेकर खड़ी हो गई। किरन सिस्टर बहुत धीरे-धीरे काॅरिडोर में बने आख़िरी कमरे की तरफ बढ़ रही थीं।

मैं भी दबे पांव उनके पीछे हो ली। मेरी दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि मुझे सुनाई दे रही थी। ऐसे, जैसे मेरे कानों पर ड्रम बज रहे हों। 

किरन सिस्टर ने धीरे से दरवाज़ा खोला और अंदर चली गईं। मैं भी कांपते पैरों से आगे बढ़ी और दरवाज़े के कांच से उन्हें देखा, जिनसे मिलने की जद्दोज़हद में मुझे किसी बीमारी, किसी महामारी की सुध नहीं थी। 

मेरा एकलौता रिश्ता, मेरी मम्मा....... निःशक्त बेड पर पड़ी थीं। आक्सीजन मास्क के अंदर से आती उनकी गर्म मगर धीमी सांसों की भाप मुझे यहाँ से भी दिख रही थी। कुछ ऐसे ही भाप के निशान दरवाज़े के कांच पर भी उभरने लगे। तब एहसास हुआ कि मेरा चेहरा भी गर्म आंसुओं से तर-बतर हो रहा था। 

तभी किरन सिस्टर मुड़ती हुई दिखाई दीं। काॅरिडोर की कम रोशनी का फ़ायदा उठाकर मैं कोने में दुबक गई। जैसे वो सहमी-सहमी आई थीं, वैसे ही बुझी-बझी जा रही थीं। इतने कम उजाले में भी उनके चेहरे पर मायूसी की इबारत साफ़ झलक रही थी। 

मैंने उनके दूसरे रूम में जाने तक का इंतज़ार किया और उनके जाते ही बिना आवाज़ किये मम्मा के रूम घुस गई। मम्मा के चारों तरफ़ इतने सारे मेडिकल इक्वीपमेंट्स थे, जिनके मुझे नाम तक नहीं पता थे। वो सब सख़्त चौकीदार की तरह मम्मा को घेरे हुए थे। मम्मा की सांसों की डोर पर उनकी बारीक निगाह हो जैसे..... 

इन्हीं ख्यालों में गुम मैं कब मम्मा के नज़दीक आ गई पता ही नहीं चला। मैंने बढ़कर उनके हाथों को थाम लिया। उनके हाथ बर्फ़ की तरह ठंडे थे। मैंने घबरा कर माथा छुआ तो हथेली जल गई। इतना तेज़ बुख़ार है मम्मा को पर हाथ बिल्कुल बर्फ़..... ऐसा कैसे हो सकता है !!!! 

सोचा किरन सिस्टर को बुलाकर पूछूं, तभी ख्याल आया कि उन्हें भनक भी पड़ी कि मैं यहाँ हूँ तो मुझे तुरंत निकाल दिया जाएगा। मैं अब मम्मा से दूर नहीं होना चाहती थी। गर्माहट लाने के लिए मैं उनकी हथेलियां सहलाने लगी। 

अन्नी...... एक धीमी सी आवाज़ आई। मैं एकटक माँ को देखने लगी। कहीं ये मेरा भ्रम तो नहीं..!!! तभी मम्मा ने दोबारा मेरा नाम लिया। 

मम्मा.... आंसुओं और सिसकियों में डूबी बस इतनी ही आवाज़ निकल पाई। 

रोते नहीं मेरा बच्चा.... मास्क हटाकर बहुत हल्की सी आवाज़ में उन्होंने कहा। 

नहीं मम्मा, मैं कहाँ रो रही हूँ। आपकी अन्नी बहुत स्ट्रांग है। स्ट्रांग मम्मा की स्ट्रांग बिटिया, है ना.... मैंने उन्हें वापस मास्क लगाते हुए कहा। 

उनके सूखे होठों पर एक निश्छल मुस्कान तैर गई। 

तुम्हें देख लिया, अब मैं इत्मीनान से मर सकती हूँ। 

ये आप क्या बोल रही हैं मम्मा... तड़प उठी मैं। 

आपको कुछ नहीं होगा। मैं आपको कहीं नहीं जाने दूंगी। आप जल्दी से ठीक हो जाइए फिर हम साथ में घर जाएंगे.... ये सिर्फ़ ज़बान नहीं, मेरे मन का विश्वास बोल रहा था। 

जा यहाँ से बेटा, वर्ना तुझे भी ये बीमारी लग जाएगी।

हमारी ज़िन्दगियां जुड़ चुकी हैं मम्मा, अब हमें कोई अलग नहीं कर सकता..... मौत का डर भी नहीं। 

अब आराम कीजिए, मैं यहीं हूँ.... आपके पास। उनका सर सहलाते - सहलाते, मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। नींद के इंजेक्शन ने रात भर सुलाए रखा था पर माँ के आंचल की गर्माहट अब मिल रही थी। 

घंटों बाद नींद खुली तो खुद को बहुत हल्का महसूस किया। मम्मा का बुखार भी उतर चुका था। वो अब भी सो रही थीं लेकिन उनका चेहरा पुरसुकून था। 

तभी पीपीई पहने तीन लोग कमरे में दाख़िल हुए। 

एक काम नहीं होता तुम लोगों से ढंग से.... ये लड़की पेशेंट के पास कैसे आ गई। स्ट्रिक्ट इंस्ट्रक्शन हैं कि कोई भी फ़ैमिली पर्सन पेशेंट के पास नहीं रूक सकता। क्या तुम लोगों को नहीं पता ???? 

उनमें से एक आदमी ज़ोर-ज़ोर से बोल रहा था और बाकी के दो सर झुकाए खड़े थे। शायद ये दोनों किरन सिस्टर और मेघना सिस्टर हैं...!!! 

अभी कुछ सेकेंड पहले तक डर लग रहा था कि ये लोग मुझे मम्मा से अलग कर देंगे पर अब उन दोनों के लिए बुरा लग रहा था।

इस लड़की का भी सैंपल लो और जब तक रिपोर्ट नहीं आ जाती, अंडर आब्जरवेशन रखो और हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट कर रहा हूं कि ध्यान से ड्यूटी करो। कब, किसे, कहाँ ये बीमारी हो जाए... कुछ कहा नहीं जा सकता इसलिए पेशेंट का भी ध्यान रखो और अपना भी। इतना कहकर वो चले गये। 

कौन थे वो...??? 

हमारे सी. एम. एस सर थे.... किरन सिस्टर ने बताया। 

आइ एम साॅरी, मेरी वजह से आप लोगों को....... 

तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था अनाहिता। तुम्हारी रिपोर्ट निगेटिव आई थी और दीदी की पाॅजिटीव। इस वक्त तक तुम अपने घर होती..... मेरी बात बीच में काटते हुए मेघना सिस्टर ने कहा। 

मेरा घर वहीं है, जहाँ मेरी मम्मा हैं। 

अनाहिता ये भावनाओं में बहने का वक्त नहीं है। बी प्रैक्टिकल.... सब कुछ तो तुम्हारी आँखों के सामने हो रहा है। कल तुम्हारी बड़ी माँ ने तुम्हारे सामने दम तोड़ा है और तुम बात को समझने के बजाय प्राॅब्लम क्रियेट कर रही हो।

ममता दीदी का बुखार उतर गया है और आक्सीजन लेवल भी बानबे है.... किरन सिस्टर ने मम्मा का चेक - अप करने के बाद कहा। 

हाँ सिस्टर, जब मैं आई थी तो मम्मा बुखार से तप रहीं थीं। लेकिन जब सो कर उठी तो नाॅर्मल थीं। 

दीदी को कल से ही बहुत तेज़ फीवर था और रात में आक्सीजन लेवल अस्सी तक पहुंच गया था। इतनी जल्दी आक्सीजन लेवल रिकवर करना तो मिरेकल है मेघना सिस्टर.... आपको नहीं लगता !!!! 

नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। ममता दीदी कल ही एडमिट हुई हैं और उन्हें पहले से कोई प्राॅब्लम भी नहीं थी। उनका इम्यून सिस्टम बहुत स्ट्रांग है, वो तो जल्दी बीमार भी नहीं होतीं। 

पर मुझे तो लगता है शायद ये...... 

पेशेंट्स के इंजेक्शन का टाइम हो रहा है किरन। तुम अनाहिता का सैंपल कलेक्ट करवा कर स्टाफ़ रूम में आ जाना। 

अनाहिता, अब प्लीज़ अपने रूम में जाओ और जब तक न कहा जाए बाहर मत निकलना। 

मुझे मम्मा के पास ही रहने दीजिए सिस्टर। वैसे भी अब मैं सस्पेक्ट हूँ। 

हमारी मुश्किलें और मत बढ़ाओ अनाहिता। तुम्हारी वजह से आज मैं पहली बार शर्मिंदा हुई हूँ। तुम इसी वक्त अपने कमरे में जाओगी...... बहुत गुस्से में थीं इस बार मेघना सिस्टर। 

सिस्टर आप चलिए, मैं अनाहिता को उसके रूम में पहुंचा दूंगी। 

उनके जाने के बाद किरन सिस्टर ने मुझे सांत्वना दी.... अनाहिता परेशान मत हो। देखो, दीदी की हालत कल से कितनी बेहतर है। अगर वो ऐसे ही रिस्पांड करती रहीं तो बहुत जल्द वो तुम्हारे साथ घर जा सकेंगी और फिर हम सब हैं ना यहाँ। बहुत अच्छे से ख्याल रखेंगे उनका। बस ईश्वर से प्रार्थना करो कि वो जल्दी से ठीक हो जाएं। 

अब चलो, तुम्हारा सैंपल दोबारा लेना होगा। 

बस एक मिनट सिस्टर..... मैं मम्मा के पास गई। उनके माथे को चूमा और कानों में कहा - मैं यहीं हूँ मम्मा, आपके पास। बस जल्दी से ठीक हो जाइये। 

दरवाज़े तक जाकर फिर उन्हें एक नज़र देखा और मुड़ गई। 

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तुम फ़िक्र मत करो अनाहिता, दीदी जल्दी ठीक हो जाएंगी। अपना ख्याल रखो ताकि दीदी का वेलकम करने के लिए घर पहले पहुंच सको.... और प्लीज़ बाहर मत निकलना वर्ना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी। मेघना सिस्टर की बात का बुरा मत मानना। दरअसल वो बहुत फ़िक्रमंद हैं तुम्हें लेकर, ऊपर से हमारी डबल शिफ़्ट हो गई आज इसलिये....... अच्छा, अब मैं चलती हूँ। तुम रेस्ट करो, गुड नाईट।

मैं वापस उसी कमरे में पहुंच गई थी, जहां से निकलने की तैयारी कर ली थी दोपहर तक। जितना इस जगह से निकलने की कोशिश करती हूँ, दलदल की तरह फंसती जाती हूँ। अब तो बस एक ही प्रार्थना है कि मम्मा जल्दी से ठीक हो जाएं बस.......


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✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️

2 comments:

  1. Awesome content..great writing skills

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    1. बहुत - बहुत शुक्रिया 😃🙏

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