कल तक मैं खुद में ही गुम, एक अनजान सी लड़की थी। जिसका इस दुनिया में कोई हाल-चाल तक लेने वाला नहीं था..... नितांत अकेली। पर इस दुर्घटना ने जैसे सब कुछ बदल दिया। तीन दिन की बेहोशी के बाद आया होश, मेरे लिए "नये जन्म" जैसा था। बरसों बाद अपनेपन का एहसास हुआ था, वो भी अनजानों से...
पूरा हॉस्पिटल स्टाफ़ छोटे से बच्चे की तरह मेरी देखभाल करता था और उस प्राइवेट वार्ड के बेड पर निःशक्त लेटी मैं.... सारा दिन इसी सोच में डूबी रहती कि दुनिया में रिश्ते - नातों का क्या मतलब है...!!!
जिनसे ख़ून का रिश्ता था, उनका ख़ून तो सालों पहले ही सूख गया। एक भरे - पूरे घर - ख़ानदान से अनाथाश्रम तक के सफ़र ने मुझे, मुझमें ही कहीं मार दिया था। साथ ही मर गई थीं मेरी सारी संवेदनाएं.....आख़िरी बार तब रोई थी, जब मेरे अपने मुझे अनाथाश्रम छोड़ कर जा रहे थे। तब, जब अपनों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।
"मुझे छोड़ कर मत जाइए प्लीज़"....
एक छोटी-सी बच्ची, जिसने अपना सब कुछ खो दिया था। गिड़गिड़ा रही थी... उन्हीं अपनों के आगे जो कभी उसे सर-आंखों पर बिठाते थे। समझ ही नहीं पा रही था कि ये क्या हो रहा है उसके साथ.... और क्यों..????
जल्द ही समझ आ गया कि मैं उनके सर का बोझ थी, जिसे वो बड़ी आसानी से उतार कर चलते बने थे। उसके बाद से मैं कभी नहीं रोई, क्योंकि जानती थी... अब कोई चुप कराने और आंसू पोंछने नहीं आएगा। वैसे भी, ये वाला "घर" सिर्फ़ नाम का घर था... जो सर पे छत, तन पर कपड़े और मुंह में निवाले से अधिक नहीं था मेरे लिए।
फिर भी इस बुरे वक्त में अगर कोई मेरे साथ था तो वो थी जानू .....मेरी डॉल। 4 साल की थी जब पापा से ज़िद की थी कि मुझे भी मेरी जानू चाहिए। दरअसल पापा, मम्मा को जानू कहते थे। पूछने पर बताते कि जैसे बेडटाईम स्टोरी के जादूगर की जान तोते में बसती थी, वैसे ही मेरी जान आपकी मम्मा में बसती है। अब तो हक़ीक़त की दुनिया से बेख़बर मैं, पापा की जादूई कहानियों की दुनिया में डूबती - उतराती रहती।
एक दिन फ़्राॅक का कोना पकड़े पापा के सामने खड़ी हो गई।
क्या हुआ प्रिंसेज़...!!! सारी फ़ाइलें एक तरफ़ करते हुए उन्होंने पूछा।
पापा, मेली जान किछमें बत्ती है...???
आप बताओ... वो मुस्कुराए और उल्टा सवाल मुझ पर दाग दिया।
मुजे नई पत्ता... जवाब तो वैसे भी मेरे पास नहीं था।
उदास देखकर उन्होंने मुझे गोद में बिठा लिया। कुछ देर सोचने के बाद मैंने अगला सवाल किया।
आपको आपकी जानू कहाँ छे मिली ??
मेरे पापा लेकर आए थे.... उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
मुजे बी मेली जानू चाईये.... आंखों में चमक भरते हुए मैंने कहा।
लेकिन प्रिंसेज़, जानू तो तब मिलती है जब आप बड़े हो जाओ। आप तो अभी बहुत छोटे हो।
बली तो ओ गई ऊं। देखिए.... मैं तुरंत ही गोद से उतरी और तन कर खड़ी हो गई।
अले हाँ, आप तो छच में बली हो गई हैं... पापा ने आंखें बड़ी करते हुए आश्चर्य से कहा।
ठीक है फ़िर, कल आपकी जानू आ जाएगी।
छच्ची... उनके घुटनों पर हाथ रख कर मैंने आश्वासन चाहा।
मुच्ची... मेरे माथे को चूमकर उन्होंने विश्वास दिलाया।
मैं मारे खुशी के पापा से लिपट गई और फिर भागते हुए सीधा मां के पास किचन में गई ये खुशखबरी देने।
अगली सुबह जब नींद खुली तो एक बड़ी-सी गुड़िया मेरे पास लेटी थी.... मेरी जानू।
✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️
waaah superb....waiting for next part
ReplyDeleteबेहतरीन रचना 👌👌👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏🙏
DeleteGood.
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
DeleteNice story
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार 🙏
Deleteअच्छी कहानी। अगले भाग की उत्सुकता है।
ReplyDeleteबहुत - बहुत धन्यावाद 🙏
DeleteNice.. Super
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏🙏
Deleteअगले भाग का इंतजार रहेगा🤗🙏
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏🙏
Deleteबहुत अच्छा ����
ReplyDeleteशुक्रिया 🤗🙏
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏🙏
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteHarsh parmar
धन्यवाद हर्ष जी 🙏
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