Saturday 30 January 2021

🌺🌺 नया जन्म - भाग 8 🌺🌺

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गुड इवनिंग मरियम.... 

गुड इवनिंग ममता सिस्टर, आप इस वक्त यहां.... आपकी तो कल मार्निंग शिफ़्ट है ना !!!! 

हां.... वो दरअसल अनाहिता के लिए खाना लाई थी और कल उसे डिस्चार्ज भी करवाना है तो सोचा आज रात यहीं रूक जाती हूँ। 

अनाहिता से याद आया सिस्टर... उसके बगल वाले रूम में जो शर्मा जी एडमिट थे ना, उनके भाई आज अनाहिता के पेरेंट्स के बारे में पूछ रहे थे। 

क्यों.....??? 

पता नहीं.... पर जैसे ही मैंने बताया, बहुत उदास हो गये। 

अच्छा..... ठीक है, देखती हूँ। 

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प्राइवेट वार्ड, जिसे कोरोना वार्ड में तब्दील कर दिया गया था। उसके स्टाफ़ रूम में कुसुम सिस्टर और विभा सिस्टर बहुत गंभीर मुद्रा में बैठी थीं। 

गुड इवनिंग विभा, गुड इवनिंग कुसुम.... 

अरे ममता दीदी आप.... आपकी तो कल की शिफ़्ट है ना...!!! 

हां भाई, कल की ही शिफ़्ट है। पहले मुझे दो मिनट सुकून से बैठने तो दो और तुम लोग भी बैठ जाओ, फिर करना सवाल - जवाब। 

हे भगवान! आज तो बहुत थक गई मैं। इस मुए कोरोना की वजह से सारे ट्रांसपोर्ट बंद हो गए हैं, पैदल ही आना-जाना पड़ा मुझे। ऊपर से ये रास्ते में पुलिस वालों ने बहुत परेशान किया। बार - बार बताना पड़ रहा था कि भाई, हाॅस्पिटल स्टाफ़ हूँ, ड्यूटी करके लौट रही हूँ। बिना आई कार्ड दिखाए, मान ही नहीं रहे हैं। कसम से, इतने इंट्रो तो मेरे स्कूल से लेकर काॅलेज तक में नहीं हुए जितना आज सुबह जाने और शाम को आने में हुए हैं।

एक तो बिल्कुल भी रेस्ट नहीं मिल पाया, शायद इसीलिए हरारत सी लग रही है। यहां से जाने के बाद भी सारा दिन घर के कामों में और अनाहिता के लिए रूम प्रिपेयर करने में लग गया।

अनाहिता के लिए रूम प्रिपेयर करने में मतलब.... विभा सिस्टर ने आश्चर्य से पूछा। 

अरे हाँ, मैं तुम लोगों को बता ही नहीं पाई। दरअसल अब अनाहिता पहले से काफ़ी बेटर है और ये कोरोना का चक्कर तो तुम लोग देख ही रहे हो इसलिए मैंने डिसाइड किया है कि अनाहिता अब मेेेरे साथ रहेगी। वो भी काफ़ी एक्साइटेड है.... और सच कहूँ तो अब मैं मेरी बच्ची को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। 

इसका मतलब अनाहिता सच कह रही थी..... मुझे तो लगा कि....!!!! 

क्या लगा तुम्हें कुसुम........ तुम दोनों इतनी परेशान क्यों हो ??? जब से आई हूँ, देख रही हूँ.... मैं लगातार बोले जा रही हूँ और तुम दोनों हाँ, हूँ तक नहीं कर रहे हो। बैठ भी नहीं रहे हो। 

कोई सिरीयस बात है क्या, अनाहिता ठीक तो है ना...!!!

हाँ दीदी, वो दरअसल सुरेंद्र शर्मा, जो अनाहिता के बगल वाले रूम में एडमिट थे। आज उनकी डेथ हो गई। 

ओह..... बहुत बीमार थे बेचारे। सच कहूँ तो अच्छा ही हुआ, मुक्ति मिल गई उन्हें। लेकिन अभी सुबह तक तो स्टेबल थे फिर अचानक से क्या हुआ....!!!! 

अच्छा मिo शर्मा से याद आया; रिसेप्शन पे मरियम अभी बता रही थी कि उनके छोटे भाई अनाहिता के पेरेंट्स के बारे में पूछ-ताछ कर रहे थे और पता चलने पर काफ़ी मायूस भी हो गए थे। तुम लोगों को कुछ पता है इस बारे में....!!!! 

ओह माई गाॅड, मतलब वो लोग वाकई उसके रिश्तेदार थे...... विभा सिस्टर ने गहरी सांस भरते हुए कहा। 

रिश्तेदार थे मतलब...... आख़िर बात क्या है, तुम लोग क्लियर बताते क्यों नहीं..???? 

विभा और कुसुम सिस्टर ने एक-दूसरे की ओर बेबस नज़रों से देखा। फिर कुसुम सिस्टर ने उन्हें आंखों देखा हाल बता दिया। 

हे राम! क्या कसूर है उस फूल सी बच्ची का, जो ये सब झेलना पड़ रहा है उसे.... परेशान हो गईं ममता सिस्टर। 

अब मैं एक पल के लिए भी अन्नी को यहाँ नहीं रख सकती। मैं अभी, इसी वक्त उसे लेकर घर जा रही हूँ। पेपर वर्क बाद में भी हो सकता है। दृढ़ कदमों और विचार से खड़ी हो गईं ममता सिस्टर। 

रूकिये दीदी, अनाहिता को नींद का इंजेक्शन लगा है। वो सुबह से पहले होश में नहीं आएगी... विभा सिस्टर ने कहा। 

कोई बात नहीं, मैं उसे ऐसे ही लेकर जाऊंगी। कल की सुबह मेरी बच्ची अपने घर में आंखें खोलेगी। 

कुसुम, मनीष से एंबुलेंस रेडी करने बोलो। 

दीदी आप अनाहिता को तब तक कहीं नहीं ले जा सकतीं, जब तक उसकी रिपोर्ट्स निगेटिव नहीं आ जातीं.... कुसुम सिस्टर ने गंभीरता से कहा। 

कैसी रिपोर्ट्स कुसुम, क्या हुआ है अनाहिता को...??? 

मिo नरेंद्र शर्मा की डेथ कोरोना से हुई है। आज सुबह ही उनकी रिपोर्ट आई थी। यही नहीं, उनका परिवार भी कोरोना पाज़िटीव था। 

था मतलब.... ममता सिस्टर की भवें सिकुड़ गईं। 

जैसा कि मैंने बताया, उनकी पत्नी उसी वक्त एक्सपायर हो गई थीं जब वो अनाहिता के पास थीं। उनके छोटे भाई और उनकी पत्नी को क्वारंटाईन किया गया था। जब शाम को केशव उनकी चाय और नाश्ता लेकर गया तो मिo सुरेंद्र अपनी पत्नी की गोद में सर रखकर लेटे लेटे हुए थे। उन दोनों की आंखें एकटक छत की ओर देख रही थीं। 

केशव ने कई बार आवाज़ लगाई पर कोई मूवमेंट न देखकर भागता हुआ हमें बताने आया। बहुत ही दिल दहलाने वाला नज़ारा था दीदी। वो दोनों भी...... 

अभी दो घंटे पहले उन सबकी रिपोर्ट आई है। उनका पूरा परिवार कोरोना पाज़िटीव था और वो सभी अनाहिता के क्लोज़ काॅन्टैक्ट में थे इसलिये अनाहिता भी कोरोना सस्पेक्ट है।

नहीं..... सुनते ही लड़खड़ा गईं ममता सिस्टर। 

मिo शर्मा के इलाज में जितने भी स्टाफ़ उनके काॅन्टैक्ट में आए थे, वो सब कोरोना सस्पेक्ट हैं, आप भी दीदी..... आख़िरी शब्द बहुत मुश्किल से कह पाईं कुसुम सिस्टर। 

इन शब्दों ने ममता सिस्टर की सारी उम्मीदों, सारे सपनों को तोड़ कर रख दिया। वो बेजान-सी हो गईं। 

दीदी, संभालिये खुद को....  कुसुम और विभा सिस्टर के मुंह से एकसाथ ये शब्द निकले पर इस बीमारी के ख़ौफ़ ने उन्हें ममता सिस्टर को संभालने को आगे बढ़ने से रोक दिया। 

दीदी प्लीज़, ऐसे हिम्मत मत हारिये। आप तो हम सबके लिए मिसाल हैं। जब भी कभी टूटते हैं तो आपको याद करके फिर से खड़े होने की ताकत मिलती है। अगर आप ही ऐसे निराश हो जाएंगी तो अनाहिता को कौन संभालेगा...!!!! 

विभा मुझे अन्नी से मिलना है.... बस एक बार, प्लीज़। हाथ जोड़कर विनती करते हुए ममता जी ने कहा। 

ये आप क्या कर रही हैं दीदी..... आप तो खुद एक नर्स हैं, अच्छे से जानती हैं ये सारी सिचुएशन। होश में आईए...... इस वक्त अनाहिता से मिलना आप दोनों के लिए जान के लिए ख़तरा बन सकता है। 

तुम सही कहती हो विभा, मैं मेरी बच्ची से मिल तो नहीं सकती पर उसे दूर से देख तो सकती हूँ ना, प्लीज़..... आंखों में आंसू भरे हुए ममता जी ने दोबारा विनती की। 

इस वक्त एक सिस्टर इंचार्ज पर माँ हावी थी और माँ की पुकार तो भगवान भी नहीं टाल पाया..... ये तो फिर भी इंसान थे। 

आइए दीदी, पर आप किसी भी चीज़ को टच नहीं करेंगी और ना ही अनाहिता के रूम में जा सकती हैं। आपको दरवाज़े से ही देखना होगा उसे.... कुसुम सिस्टर ने कहा।

भारी मन से उठीं ममता जी पर चक्कर आ गया और फिर से चेयर पर बैठ गईं। उनकी ये हालत देखकर दोनों सिस्टर की आंखें भी नम हो गईं। 

कुछ देर के लिए सब ठहर सा गया। थोड़ी देर बाद अपनी बची-खुची ऊर्जा समेट कर ममता जी फिर खड़ी हुईं..... चलो कुसुम। 

जो ममता सिस्टर अपनी तेज़ चाल के लिए पूरे हाॅस्पिटल में प्रसिद्ध थीं, आज किसी वृद्ध की भांति धीरे-धीरे चल रही थीं। 

उन्होंने दरवाज़े के कांच से देखा, अनाहिता गहरी नींद में थी। सोते हुए कितनी मासूम लगती है ना मेरी बच्ची, कुसुम...... हाँ दीदी, दूर खड़ी कुसुम सिस्टर ने आंसू रोकते हुए जवाब दिया। 

आप चिंता मत कीजिए, हम कुछ नहीं होने देंगे आप दोनों को। पूरा हाॅस्पिटल जान लगा कर आप दोनों की सेवा करेगा। अब तक आपने हम सबको बड़ी बहन की तरह संभाला है, अब हमारी बारी है अपना फर्ज़ निभाने की। ये वादा है हमारा आपसे.... 

मेरी अन्नी का ख़्याल रखना कुसुम...... आंखों से ही अनाहिता को चूमकर मुड़ गईं ममता जी। 

उधर नहीं, इस तरफ़ चलिये दीदी..... आपका भी सैंपल लेना है। बिना कुछ कहे ममता जी सर झुकाए उस दिशा में चल दीं। 

दिनेश, स्टाफ़ रूम और ये सब तुरंत सैनिटाइज़ करो.... पीछे आ खड़े वार्डब्वाॅय को इंस्ट्रक्शन देकर कुसुम सिस्टर ममता जी के साथ हो लीं। 

उनका सैंपल लेकर और एडमिट कर जब वापस लौटीं तो विभा सिस्टर को सर झुकाए बैठा पाया। 

दीदी को 101 डिग्री फ़ीवर है विभा। उनके सिम्प्टम दिखने शुरू हो गए हैं। 

सुनते ही विभा सिस्टर चौंक पड़ी। ये सब क्या हो रहा है कुसुम..... अपने पंद्रह साल के कैरियर में मैंने खुद को इतना बेबस और लाचार कभी महसूस नहीं किया। बीमारियाँ पहले भी आईं, लोग बीमार हुए। कई जान से भी गए पर तब इतना बंधा हुआ फ़ील नहीं किया जितना आज कर रही हूँ। 

मेरी ममता दीदी, मेरे आगे रो रही थीं, हाथ जोड़कर विनती कर रही थीं पर मैं उन्हें बढ़कर गले नहीं लगा सकी, उन्हें ढांढस नहीं बंधा सकी कि दीदी, आप फ़िक्र मत किजिए। हम सब हैं आपके साथ..... 

तुम जानती हो ना कुसुम, उन्होंने मेरे लिए क्या कुछ नहीं किया है और मैं, मैं कुछ नहीं कर पा रही हूँ उनके लिए..... फूट-फूटकर रो पड़ीं विभा सिस्टर। 

इतनी देर से खुद को पत्थर किये बैठीं कुसुम सिस्टर के जज़्बात भी आंखों के रास्ते बह निकले। 

ये वही स्टाफ़ रूम है जो कभी स्टाफ़ नर्सेज़ की हँसी से गुलज़ार हुआ करता था। कभी ओवर देते वक्त सीरियस हो जाता था तो कभी गुपचुप गाॅसिप का केंद्र बन जाता था। मगर आज यहां सन्नाटा पसरा है....... मौत का सन्नाटा............ 


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✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️

Wednesday 13 January 2021

🍃🍃 सुकून 🍃🍃


 

Sunday 10 January 2021

🌺🌺नया जन्म - भाग 7🌺🌺

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अंदर ही अंदर जाने क्या मुझे खाए जा रहा था। कुछ देर तक यूहीं बैठे रहने के बाद मैं दीवार के सहारे खड़ी हुई। दरवाज़ा खोला और बाहर काॅरिडोर में आ गई। कुछ दूर बेंच पर वही दोनों लोग बैठे थे जो कुछ देर पहले मेरे दरवाज़े पर थे। उनके बीच शून्य की ओर ताकती एक वृद्धा बैठी थीं। एक ज़माने में ये मेरा परिवार हुआ करता था। मैंने अपनी मुट्ठियां भींच रखी थीं, जैसे खड़े रहने की सारी ताकत उन्हीं से मिल रही हो। 

अनाहिता, तुम बाहर क्या कर रही हो...!!!! अंदर जाओ..... 

कुसुम सिस्टर की आवाज़ सुन मैं चौंक गई। 

अनाहिता..... ये नाम सुनकर उस निष्प्राण देह वृृद्धा की पलकें झपकींं। आवाज़ की विपरीत दिशा में देखते ही उनका चेहरा सफेद पड़़ गया। हम दोनों एक-दूसरे को निर्निमेष देख रहे थे। सहसा वो उठीं और तेज़ कदमों से मेेरी तरफ़ बढ़ीं। बिल्कुल पास आकर उन्होंने मेरा चेहरा अपने हाथों में भर लिया। बहुत कुछ भरा था उनकी आंखों में..... जो मुझे गले लगाते ही बांध तोड़ कर बह चला। मैंने मुट्ठियां और कस कर भींच लीं। 

अन्नी...... मेरी अन्नी..... तू मेरी अन्नी है ना....!!!!! 

बिल्कुल मेरे महेंद्र का चेहरा पाया है तूने। तभी तो देखते ही पहचान लिया मैंने..... वो लगातार रोये जा रही थीं। 

नरेंद्र, मनोरमा.... देखो, हमारी अन्नी। 

वो दोनों हैरानी से हमें देखे जा रहे थे। केवल वही नहीं, आसपास काफ़ी लोग जुट गए थे। 

अन्नी.... तूने पहचाना मुझे। मैं तेरी बड़ीमम्मा.... वसुंधरा। ये तेरी बड़ीमम्मा मनोरमा और ये बड़ेपापा नरेन्द्र। बेटा कुछ याद आया....!!! बोल न बेटा.... तू कुछ बोलती क्यों क्यों नहीं ??? 

वो झिंझोड़े जा रही थीं और मैं बुत बनी खड़ी थी। जैसे होंठ सिल गए हों, आंखें पथरा गईं हों और शरीर बेजान हो गया हो। न उनकी दयनीय हालत पर रोना आ रहा था और न उनकी बर्बादी पर हंसी। कायदे से तो मुझे उन्हें दुनिया - समाज के सामने ज़लील करना चाहिए था..... पर शरीर के साथ - साथ मन भी शून्य हो गया था। 

नरेंद्र, मनोरमा... देखो ना, ये कुछ बोलती ही नहीं। बेटा तू मुझे नहीं पहचान पा रही है पर मैंने तुझे पहचान लिया है। तू मेरी ही अन्नी है.... वो रोते - रोते अचानक मेरे पैरों में गिर पड़ीं। मेरी मुट्ठियां और कस गईं। 

मुझे माफ़ कर दे अन्नी.... मुझे माफ़ कर दे। मैंने तुझे तेरे ही घर से बाहर निकाल दिया मेरी बच्ची। तेरे साथ हमने जो अन्याय किया, देख उसकी सज़ा हम सबको मिल गई। घर बिक गया, बिज़नेस चौपट गया.... और जिन बेटों के लिए तेरा हक़ छीना, वो बेटे भी दुश्मन हो गए अन्नी। हम बर्बाद हो गए अन्नी, हमें माफ़ कर दे....!!!! बोलते - बोलते वो बेहोश हो गईं। 

भाभी.... अब तक जो बड़ीमम्मा और बड़ेपापा हैरान-परेशान हो हमें देख रहे थे, वो उन्हें संभालने के लिए भागते हुए आए। 

सिस्टर देखिये ना, क्या हो गया भाभी को...!!!! मदद कीजिए प्लीज़.... 

कुछ देर तक वो लोग यूंही उन्हें होश में लाने की कोशिश करते रहे, मदद मांगते रहे और मैं मूर्तिवत् खड़ी रही। कोई भी आगे नहीं आया। कुछ देर बाद प्लास्टिक के कपड़े पहने कुछ लोग आए और उन्हें स्ट्रेचर पर ले गए। बड़ीमम्मा और बड़ेपापा भी उनके पीछे - पीछे चले गए। 

उनके जाने के बाद कुसुम सिस्टर ने मुझे दोबारा कमरे में जाने को कहा। वो मुझसे कुछ दूर खड़ी थीं फिर दिखनी बंद हो गईं.......... 

मुझे उलझन सी महसूस हो रही थी। ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी। एक झटके से उठ बैठी मैं। 

कौन है..... सामने नीली प्लास्टिक के कपड़े पहने शख़्स को देख मैं ज़ोर से चीखी। 

ईज़ी अनाहिता... मैं हूँ, कुसुम सिस्टर। वो थोड़ा पीछे हटते हुए बोलीं। 

सिस्टर.... आप.... ये.... ये क्या पहन रखा है आपने और मैं तो बाहर काॅरिडोर में थी, यहां कैसे....!!! सर में फिर से दर्द शुरू हो गया था मेरे। 

रिलैक्स अनाहिता..... ये पीपीई है, कोरोना से बचाव के लिए। बाहर बेहोश हो गई थी तुम। 

पर आप मेरी नाक.... कर क्या रही थीं मुझे....???? 

सैंपल ले रही थी, कोरोना टेस्ट के लिए। 

क्या..... पर क्यों....!!! मैं झुंझला गई। 

शांत हो जाओ अनाहिता। तुम्हारे बगल वाले कमरे में जो डेथ हुई है.... मिo सुरेंद्र शर्मा, वो कोरोना पाॅज़िटीव थे। हमारे शहर का पहला कोरोना केस है ये.... वो भी पहली कोरोना पाॅज़िटीव डेथ का।  पूरे हाॅस्पिटल में हडकंप मचा हुआ है। जितने भी लोग उनके काॅन्टैक्ट में रहे हैं, सबके टेस्ट हो रहे हैं। 

पर मैं तो उनसे मिली भी नहीं.... देखा तक नहीं उन्हें। मैं बुरी तरह चौंक गई। 

पर उनकी फ़ैमिली पूरे समय उनके साथ थी इसलिए वो सभी कोरोना सस्पेक्ट हैं। उनके भी सैंपल गए हैं टेस्ट के लिए और अभी काॅरिडोर में जिस तरह उनकी पत्नी तुम्हारे साथ.... मेरा मतलब है तुम्हारे काफ़ी क्लोज़ कान्टैक्ट में थीं इसलिए अब तुम भी सस्पेक्ट हो। बाई द वे अब तुम होश में आ गई हो तो प्लीज़ कोआपरेट करो। तुम्हारी नाक से सैंपल ले लिया है। अब मुंह खोलो, गले से स्वाब सैंपल लेना है। 

मैं भौंचक्की सी उन्हें देखे जा रही थी। अब समझ आया कि इसीलिए कोई मदद करने को आगे नहीं आ रहा था बड़ीमम्मा की। सिस्टर थोड़ा पास आ गईं सैंपल लेने के लिए। 

अच्छा अनाहिता, तुम दोनों सेम सरनेम शेयर करते हो ना... शर्मा, राईट?? क्या सच में वो तुम्हारे रिश्तेदार हैं...!!! 

मुझे उबकाई आ गई। पता नहीं उनके सैंपल लेने से या उनके सवाल से...!!! 

तभी दरवाज़ा खुला और..... भाभी नहीं रहीं अन्नी। बड़ीमम्मा और बड़ेपापा रोते हुए कमरे में दाख़िल हुए। 

अरे रूकिए प्लीज़...... आप लोग ऐसे बाहर नहीं घूम सकते। कहाँ जा रहे हैं रूकिए....!!!! उनके पीछे कुसुम सिस्टर की ही तरह पीपीई किट पहने दो और लोग भागे चले आ रहे थे लेकिन उन लोगों को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था।  

अपने किए का प्रायश्चित करके वो मुक्त हो गईं अन्नी। तुम्हें देखते ही पहचान लिया था उन्होंने और जाने से पहले माफ़ी भी मांग ली। अब हमें भी मुक्त कर दो अन्नी। बहुत बुरा सुलूक किया हमने तुम्हारे साथ बच्ची। हमें माफ़ कर दो। वो ज़ार-ज़ार रोये जा रहे थे और रोते-रोते पैर पकड़ लिए मेरे। 

मैं फिर से स्तब्ध हो गई। पैर खींचना चाह रही थी पर खींच नहीं पा रही थी। मेरी ये हालत देख बड़ी मुश्किल से वो लोग उन्हें बाहर लेकर गए। 

रिलैक्स अनाहिता, तुम्हारी हालत ठीक नहीं है। आराम की सख़्त ज़रूरत है। डाॅo चौहान ने तुम्हें नींद का इंजेक्शन देने को कहा है। अब तुम रेस्ट करो। जैसे ही तुम्हारी रिपोर्ट आती है, तुम्हें बता दिया जाएगा..... सिस्टर ने इंजेक्शन लगाते हुए कहा।

नींद की दवा क्यों..... मुझे अभी नहीं सोना। मुझे मम्मा से मिलना है। वो बस आती ही होंगी थोड़ी देर में... मैं परेशान हो गई। 

टेक रेस्ट अनाहिता, यू रियली नीड इट.... वो कहकर चली गईं। 

नहीं, मुझे नहीं सोना। मुझे मम्मा से मिलना है। मैं बड़बड़ाते हुए अपना फ़ोन ढूंढने लगी। डायल लिस्ट खोली और मम्मा का नंबर डायल करना चाहा पर स्क्रीन धुंधली नज़र आने लगी। मैं ज़बरदस्ती आंख खोलने की कोशिश कर रही थी पर....... 

धीरे-धीरे मैं गहरी नींद की आगोश में चली गई। फ़ोन मेरे हाथ में अब भी था, जिसमें लास्ट डायल ममता सिस्टर शो कर रहा था।


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✍️✍️प्रियन श्री ✍️✍️

Saturday 2 January 2021

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 6) 🌺 🌺

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हर तरफ़ अफ़रा - तफ़री का माहौल था। एक अनजानी सी बीमारी ने देश और दुनिया में पैर पसारना शुरू कर दिया था। स्थिति भयावह से विस्फोटक हो चली थी। लोग मर रहे थे और ये संख्या हर पल दूनी होती जा रही थी। दुनिया भर की सरकारें इस बीमारी से बचाव के के लिए हर संभव प्रयास कर रही थीं। उनमें से एक लाॅकडाउन भी था, जो एक तरह से बिल्कुल नया था हम सबके लिए.... ।

हमारे देश में हालात फिर भी बेहतर थे; पर दुनिया के कई देशों में इस बीमारी ने तांडव करना शुरू कर दिया था... मौत का तांडव। सामान्य  सर्दी-जुकाम की तरह शुरू होने वाली ये बीमारी जल्द ही सांस लेने की तकलीफ़ में बदल जाती। जब तक समझ आता, बहुत देर हो जाती। इस बीमारी का सबसे दर्दनाक पहलू ये था कि लोग अपने प्रियजनों को आख़िरी बार न तो देख सकते थे और न ही उनका अंतिम संस्कार कर सकते थे।

इस बीमारी को वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस  नाम दिया। कोरोना पर पिछले कई दिनों से ख़बरें आ रही थीं पर मैं खुद  में ही इतनी गुम थी कि दीन - दुनिया से बेख़बर रहती थी। टीवी पर चलती ख़बरों से हर पल एक नई जानकारी सामने आती। उन्हीं में से एक न्यूज़ से मेरा माथा ठनका। कई सालों पहले फैले एक जानलेवा सार्स वायरस.... और कोरोना --- एक ही प्रजाति के वायरस हैं।

धुंधली सी कुछ यादों ने मुझे आ घेरा। ये वही वायरस था जिस पर मेरे पापा रिसर्च कर रहे थे और इसी की वजह से हमारी हंसती-खेलती ज़िन्दगी जल कर ख़ाक हो गई। मेरा जी घबराने लगा। क्या वही मौत का तांडव फिर से शुरू होने वाला है...???

मैं मां का इंतज़ार करने लगी। अब मैं फिर से अकेली नहीं होना चाहती थी.... लेकिन कल की नाइट शिफ्ट के बाद क्या आज वो आएंगी..!!! तभी मेघना सिस्टर मेरी दवाईयां लेकर आईं। 

मम्मा कब आएंगी....!!! मैं झट से पूछ बैठी। 

उनके माथे की सिलवटों को देख मुझे होश आया। 

मेरा मतलब है ममता जी की आज कौन सी शिफ्ट है..??

आज उनकी छुट्टी है। अब वो कल सुबह आएंगी ---- लेकिन पता नहीं आज घर कैसे गई होंगी..!!! वो अनमनी सी हो गईं। 

क्या मतलब, घर कैसे गई होंगी...???

अभी सुबह ही तो बताया था कि लाॅकडाउन लग गया पूरे देश में। लाॅकडाउन मतलब सब कुछ बंद..... न बाज़ार, न दुकानें, न स्कूल - काॅलेज, न दफ़्तर और न ही गाड़ी - मोटर; सब बंद..... पैदल ही जाना पड़ा होगा।

पता तो रात को ही चल गया था, पर ममता दीदी बहुत खुश थीं.... बहुत दिनों बाद इतनी खुश थीं, तुम्हारे साथ...। उनका ये स्पेशल डे बर्बाद नहीं करना चाहती थी इसीलिए नहीं बताया।

अरे हाँ, ये लो तुम्हारा फ़ोन। दीदी ने मुझे बनवाने के लिए दिया था। मैंने उनका नंबर भी सेव कर दिया है इसमें... कहते हुए मुस्कुरा दीं वो।

थैंक्यू... जवाब के साथ मैं भी मुस्कुरा उठी।

सालों से चलती आ रही मेरी सीधी-सपाट ज़िन्दगी इन दिनों उस आकाश झूले की तरह हो गई थी, जो पलक झपकते ही कभी ऊपर जाता था, तो कभी नीचे.... । पहले मेरा एक्सीडेंट, फिर मम्मा का आना; और अब ये कोरोना। अभी जाने और क्या-क्या होना बाकी है...!!!!

बस दिल से एक दुआ निकलती, कि अब और बुरा नहीं...।

मेघना सिस्टर के जाने के बाद मैंने कांपते हाथों से मम्मा का नंबर डायल किया। रिंग की आवाज़ के साथ जाने क्यों दिल ज़ोरों से धड़कने लगा..!!!

हैलो.... मम्मा की आवाज़ थी।

मन अथाह भावों से भर उठा पर शब्द एक भी न निकला।

हैलो.... दुबारा आवाज़ आई।

मम्मा....... 

अन्नी बेटा, तुम्हारा फोन ठीक हो गया...!! मैं अभी मेघना को फोन करके थैंक्यू बोलूंगी।

मम्मा आप कब आओगे, मुझे अच्छा नहीं लग रहा। बहुत याद आ रही है आपकी.... बोलते - बोलते मैं रूआंसी हो गई।

उदास नहीं होते मेरा बच्चा, मैं आती हूँ ना शाम को। 

पर आपकी तो कल सुबह की शिफ्ट है ना....। आप कैसे  बार-बार ट्रैवेल करेंगी, पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी तो बंद हो गए हैं...!!!!

अरे बाबा रे... इतनी फ़िक्र। आपकी मम्मा बहुत स्ट्रांग है बच्चा। वैसे भी, मैं रात को आपके पास ही रुकूंगी। पैकिंग भी तो करनी है आपकी ; और सुबह डिस्चार्ज पेपर भी बनवाने हैं ताकि कल की ड्यूटी करके आपको साथ ही लेकर घर लौट सकूं।

घर.... मुझे मेरे कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था लेकिन मम्मा की बातों में अधिकार की आभा साफ़ झलक रही थी। 

हां बच्चा, अब आपकी तबियत बहुत बेहतर है। अब घर पे आराम करना है बस....। कुछ वक्त बाद आप बिल्कुल ठीक हो जाओगे। आप आओगे ना बच्चा..... मम्मा के पास रहने ??? 

मैं..... आपके साथ.... घर...... सच मम्मा....!!!!! मैं रोने-रोने को हो आई। 

हां बच्चा, अब मैं आपको कभी भी खुद से दूर नहीं जाने दूंगी। हमेशा अपने आंचल में छुपा के रखूंगी अपनी अन्नी को....

आप रोना नहीं मेरा बच्चा.... मम्मा जल्दी से आती है आपके पास। ओके...!!!!

ओके मम्मा...... फोन रखते ही मैं रो पड़ी। 

ज़िन्दगी भी क्या शै है.....!!! कभी एक झटके में सब छीन लेती है, तो कभी पल में इतना कुछ दे देती है कि दामन छोटा पड़ जाए। एक बिन माँ की बच्ची को माँ  मिल जाए तो ज़माने भर की दौलत कम है उसके आगे। मेेरा का हाल भी कुछ ऐसा ही था।

आजकल पांव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे..... बिल्कुल हवा में उड़ रही थी मैंं ; सच में..... इतनी खुश थी, इतनी खुश..... कि कोरोना, लाॅकडाउन कुछ याद ही नहीं रहा। कल मैं घर जाऊंगी; अपने घर.... जैसे सदियाँ बीत गई हों घर में कदम रखे। 

अपनी खुशियां संभाल कर रखने की कोशिश कर ही रही थी कि ज़ोर - ज़ोर से रोने की आवाज़ सुनकर मेरी तंद्रा टूटी। मुझसे रहा नहीं गया इसलिए उठकर दरवाज़े को थोड़ा सा खोलकर खड़ी हो गई। शोर सुनकर पता चला कि मेरे बगल वाले कमरे में एडमिट मरीज़ नहीं रहे...। 

मैं उदास हो गई। किसी अपने को खोने का दर्द मैं अच्छी तरह समझती हूँ। चुपचाप आकर बेड पर लेट गई। ऐसे समय में लोगों को सांत्वना देना मेरे लिए बहुत मुश्किल भरा होता है। जो चीज़ें मैं खुद आजतक नहीं समझ पाई, वो किसी और को कैसे समझाऊं....!!!!!

बहरहाल मैं फिर से घर के सपने देखने लगी। जहां मैं और मम्मा साथ-साथ रहेंगे। मम्मा ने ये तो कहा कि वो शाम को आएंगी पर कितने बजे तक.... ये तो उन्होंने बताया ही नहीं। फोन करके पूछूं क्या..!!! नहीं-नहीं.... बेचारी थक गई होंगी और फिर डिनर भी तो बनाना होगा उन्हें। ज़रूर मेरे लिए कुछ स्पेशल बना रही होंगी। उन्हें डिस्टर्ब नहीं करूंगी।

मम्मा का घर कितनी दूर होगा यहां से.... पैदल आने-जाने में वक्त भी तो लगता है। इसी उधेड़बुन में व्यस्त थी कि दरवाज़े से आती खुसुर-फुसुर ने मेरा ध्यान खींचा। वैसे लोगों की बातें छुपकर सुनना पसंद नहीं मुझे; पर न जाने किस ख्याल में धीमे कदमों से बिना आहट किये दरवाज़े से कान लगा कर खड़ी हो गई।

ये क्या पाप-पुण्य का रोना लेकर बैठ गई तुम भाभी के सामने... हालत देखी रही हो उनकी, ये वक्त है इन बातों का...!!!!! सब कुछ लुट गया उनका और तुम....

उनका सब लुट गया और हमारा.....हमारा क्या बचा है नरेंद्र ?? क्या अब तक आपकी आँखें नहीं खुलीं !!! ये हमारे पापों का फल है जो हमने, हम सबने मिल कर किया था। हमारी फूल सी बच्ची जो हमें बड़ीमम्मा-बड़ेपापा कहते नहीं थकती थी, उसे हमने...... इतना बड़ा घर-परिवार होते हुए भी कोई अपना न हो सका उसका। 

सच कहते हैं, माँ-बाप से बढ़कर कोई सगा नहीं होता। उस बेचारी नन्हीं-सी जान के सर से माँ-बाप का साया क्या उठा..... उसके सो काॅल्ड अपने ही दुश्मन हो गये। जिस धन-संपत्ति के लिए हमने ये पाप किया, वो सब उसके पिता की ही तो देन थी। क्या थे आप दोनों भाई..... छोटे - मोटे व्यापारी !!! उसने अपने खून-पसीने की कमाई से आपको इतने बड़े बिज़नेस का मालिक बनाया, महल जैसा घर बनवाया जिसमें वो साल के केवल कुछ दिन ही रह पाता था..... क्योंकि घर की स्थिति सुधारने के लिए वो बेचारा विदेश में पड़ा था। 

हमसे बड़ा एहसान फ़रामोश और कौन होगा दुनिया में....!!! जिस भाई ने चार पैसे का आदमी बनाया, समाज में रूतबा और इज़्ज़त दिलवाई उसी के साथ इतना बड़ा धोखा करते हमारी रूह भी नहीं कांपी.... और देखिये ना क्या बचा हमारे पास..???? वो महल जैसा घर बेचकर हमें यहां आना पड़ा। 

जिन बेटों के लिए हम ये पाप कर रहे थे, वो भी हमें छोड़कर चले गए। पहले भाईसाहब का बड़ा बेटा ज्यादा लाड़-प्यार में गलत सोहबत की बलि चढ़कर, जरायम की दुनिया में खो गया। फिर छोटे बेटे को पैरालिसिस हो गया। चार साल तक बेड पर रहा और एक दिन भगवान को उस पर तरस आ गया। हमारे अपने दोनों बेटे..... वो कब तक हमारे गुनाहों से बचे रहते..!!! जानते हैं उस कार एक्सीडेंट में हम क्यों बच गये..... क्योंकि अभी तक हमने अपने पापों का प्रायश्चित नहीं किया है। 

भाईसाहब भी दिल पर बोझ लेकर ही गये हैं नरेंद्र..... और दीदी, मैंने देखा है उनकी आंखों में पछतावा। अपने घर की लक्ष्मी को अपने हाथों ही धक्के मारकर बाहर निकाल देने का पछतावा। वो सिर्फ़ बेटी नहीं थी हमारे घर की.... श्री  थी। केवल धन-दौलत ही नहीं, सुख-शांति और खुशहाली भी उसी से थी। सी लक्ष्मी को हमने अनाथाश्रम भेज दिया। 

तुम ठीक कहती हो मनोरमा। दिल के एक कोने से हर वक़्त आवाज़ आती थी कि..... पर मेरी आंखों पर अहंकार जो पर्दा पड़ा था, वो मुझे ये सब स्वीकार ही नहीं करने देता था। पता नहीं हम भी कभी प्रायश्चित कर पायेंगे या भाईसाहब की तरह ही एड़ियां रगड़ते हुए......।

मनोरमा, नरेंद्र, बड़ीमम्मा - बड़ेपापा, अनाथाश्रम..... ये सारे शब्द एक साथ मेरे जेहन में कौंधने लगे। ज़रा उचककर मैंंने दरवाजे के कांच से उन लोगों को देखने की कोशिश की। अच्छा - ख़ासा वक्त बीत चुका है फिर भी मैंने देखते ही पहचान लिया। भूल भी कैसे सकती हूँ उन्हें......!!! मैं वहीं दरवाजे के पास निढाल होकर बैठ गयी। वो पूरी घटना सजीव हो गई मस्तिष्क में।

यानि वो मेरे बड़ेपापा थे जो अभी..... और ये भी मेरे..... सोचने-समझने की शक्ति ही खो बैठी मैं। अभी थोड़ी देर पहले तक मैं अपने नए घर जाने की खुशी में बावरी हुई जा रही थी और अचानक ही मेरा अतीत सामने आ खड़ा हुआ। ठीक से खुश भी नहीं हो पाई थी कि आंसुओं के सैलाब ने फिर से मुझे डुबो दिया। क्या खुशियों की कोई दुश्मनी है मुझसे..... क्यों वो बस मुझे छूकर गुज़र जाती हैं ???? अब तो खुशियों से भी डर लगने लगा है।


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✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️

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