Sunday 10 January 2021

🌺🌺नया जन्म - भाग 7🌺🌺

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अंदर ही अंदर जाने क्या मुझे खाए जा रहा था। कुछ देर तक यूहीं बैठे रहने के बाद मैं दीवार के सहारे खड़ी हुई। दरवाज़ा खोला और बाहर काॅरिडोर में आ गई। कुछ दूर बेंच पर वही दोनों लोग बैठे थे जो कुछ देर पहले मेरे दरवाज़े पर थे। उनके बीच शून्य की ओर ताकती एक वृद्धा बैठी थीं। एक ज़माने में ये मेरा परिवार हुआ करता था। मैंने अपनी मुट्ठियां भींच रखी थीं, जैसे खड़े रहने की सारी ताकत उन्हीं से मिल रही हो। 

अनाहिता, तुम बाहर क्या कर रही हो...!!!! अंदर जाओ..... 

कुसुम सिस्टर की आवाज़ सुन मैं चौंक गई। 

अनाहिता..... ये नाम सुनकर उस निष्प्राण देह वृृद्धा की पलकें झपकींं। आवाज़ की विपरीत दिशा में देखते ही उनका चेहरा सफेद पड़़ गया। हम दोनों एक-दूसरे को निर्निमेष देख रहे थे। सहसा वो उठीं और तेज़ कदमों से मेेरी तरफ़ बढ़ीं। बिल्कुल पास आकर उन्होंने मेरा चेहरा अपने हाथों में भर लिया। बहुत कुछ भरा था उनकी आंखों में..... जो मुझे गले लगाते ही बांध तोड़ कर बह चला। मैंने मुट्ठियां और कस कर भींच लीं। 

अन्नी...... मेरी अन्नी..... तू मेरी अन्नी है ना....!!!!! 

बिल्कुल मेरे महेंद्र का चेहरा पाया है तूने। तभी तो देखते ही पहचान लिया मैंने..... वो लगातार रोये जा रही थीं। 

नरेंद्र, मनोरमा.... देखो, हमारी अन्नी। 

वो दोनों हैरानी से हमें देखे जा रहे थे। केवल वही नहीं, आसपास काफ़ी लोग जुट गए थे। 

अन्नी.... तूने पहचाना मुझे। मैं तेरी बड़ीमम्मा.... वसुंधरा। ये तेरी बड़ीमम्मा मनोरमा और ये बड़ेपापा नरेन्द्र। बेटा कुछ याद आया....!!! बोल न बेटा.... तू कुछ बोलती क्यों क्यों नहीं ??? 

वो झिंझोड़े जा रही थीं और मैं बुत बनी खड़ी थी। जैसे होंठ सिल गए हों, आंखें पथरा गईं हों और शरीर बेजान हो गया हो। न उनकी दयनीय हालत पर रोना आ रहा था और न उनकी बर्बादी पर हंसी। कायदे से तो मुझे उन्हें दुनिया - समाज के सामने ज़लील करना चाहिए था..... पर शरीर के साथ - साथ मन भी शून्य हो गया था। 

नरेंद्र, मनोरमा... देखो ना, ये कुछ बोलती ही नहीं। बेटा तू मुझे नहीं पहचान पा रही है पर मैंने तुझे पहचान लिया है। तू मेरी ही अन्नी है.... वो रोते - रोते अचानक मेरे पैरों में गिर पड़ीं। मेरी मुट्ठियां और कस गईं। 

मुझे माफ़ कर दे अन्नी.... मुझे माफ़ कर दे। मैंने तुझे तेरे ही घर से बाहर निकाल दिया मेरी बच्ची। तेरे साथ हमने जो अन्याय किया, देख उसकी सज़ा हम सबको मिल गई। घर बिक गया, बिज़नेस चौपट गया.... और जिन बेटों के लिए तेरा हक़ छीना, वो बेटे भी दुश्मन हो गए अन्नी। हम बर्बाद हो गए अन्नी, हमें माफ़ कर दे....!!!! बोलते - बोलते वो बेहोश हो गईं। 

भाभी.... अब तक जो बड़ीमम्मा और बड़ेपापा हैरान-परेशान हो हमें देख रहे थे, वो उन्हें संभालने के लिए भागते हुए आए। 

सिस्टर देखिये ना, क्या हो गया भाभी को...!!!! मदद कीजिए प्लीज़.... 

कुछ देर तक वो लोग यूंही उन्हें होश में लाने की कोशिश करते रहे, मदद मांगते रहे और मैं मूर्तिवत् खड़ी रही। कोई भी आगे नहीं आया। कुछ देर बाद प्लास्टिक के कपड़े पहने कुछ लोग आए और उन्हें स्ट्रेचर पर ले गए। बड़ीमम्मा और बड़ेपापा भी उनके पीछे - पीछे चले गए। 

उनके जाने के बाद कुसुम सिस्टर ने मुझे दोबारा कमरे में जाने को कहा। वो मुझसे कुछ दूर खड़ी थीं फिर दिखनी बंद हो गईं.......... 

मुझे उलझन सी महसूस हो रही थी। ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी। एक झटके से उठ बैठी मैं। 

कौन है..... सामने नीली प्लास्टिक के कपड़े पहने शख़्स को देख मैं ज़ोर से चीखी। 

ईज़ी अनाहिता... मैं हूँ, कुसुम सिस्टर। वो थोड़ा पीछे हटते हुए बोलीं। 

सिस्टर.... आप.... ये.... ये क्या पहन रखा है आपने और मैं तो बाहर काॅरिडोर में थी, यहां कैसे....!!! सर में फिर से दर्द शुरू हो गया था मेरे। 

रिलैक्स अनाहिता..... ये पीपीई है, कोरोना से बचाव के लिए। बाहर बेहोश हो गई थी तुम। 

पर आप मेरी नाक.... कर क्या रही थीं मुझे....???? 

सैंपल ले रही थी, कोरोना टेस्ट के लिए। 

क्या..... पर क्यों....!!! मैं झुंझला गई। 

शांत हो जाओ अनाहिता। तुम्हारे बगल वाले कमरे में जो डेथ हुई है.... मिo सुरेंद्र शर्मा, वो कोरोना पाॅज़िटीव थे। हमारे शहर का पहला कोरोना केस है ये.... वो भी पहली कोरोना पाॅज़िटीव डेथ का।  पूरे हाॅस्पिटल में हडकंप मचा हुआ है। जितने भी लोग उनके काॅन्टैक्ट में रहे हैं, सबके टेस्ट हो रहे हैं। 

पर मैं तो उनसे मिली भी नहीं.... देखा तक नहीं उन्हें। मैं बुरी तरह चौंक गई। 

पर उनकी फ़ैमिली पूरे समय उनके साथ थी इसलिए वो सभी कोरोना सस्पेक्ट हैं। उनके भी सैंपल गए हैं टेस्ट के लिए और अभी काॅरिडोर में जिस तरह उनकी पत्नी तुम्हारे साथ.... मेरा मतलब है तुम्हारे काफ़ी क्लोज़ कान्टैक्ट में थीं इसलिए अब तुम भी सस्पेक्ट हो। बाई द वे अब तुम होश में आ गई हो तो प्लीज़ कोआपरेट करो। तुम्हारी नाक से सैंपल ले लिया है। अब मुंह खोलो, गले से स्वाब सैंपल लेना है। 

मैं भौंचक्की सी उन्हें देखे जा रही थी। अब समझ आया कि इसीलिए कोई मदद करने को आगे नहीं आ रहा था बड़ीमम्मा की। सिस्टर थोड़ा पास आ गईं सैंपल लेने के लिए। 

अच्छा अनाहिता, तुम दोनों सेम सरनेम शेयर करते हो ना... शर्मा, राईट?? क्या सच में वो तुम्हारे रिश्तेदार हैं...!!! 

मुझे उबकाई आ गई। पता नहीं उनके सैंपल लेने से या उनके सवाल से...!!! 

तभी दरवाज़ा खुला और..... भाभी नहीं रहीं अन्नी। बड़ीमम्मा और बड़ेपापा रोते हुए कमरे में दाख़िल हुए। 

अरे रूकिए प्लीज़...... आप लोग ऐसे बाहर नहीं घूम सकते। कहाँ जा रहे हैं रूकिए....!!!! उनके पीछे कुसुम सिस्टर की ही तरह पीपीई किट पहने दो और लोग भागे चले आ रहे थे लेकिन उन लोगों को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था।  

अपने किए का प्रायश्चित करके वो मुक्त हो गईं अन्नी। तुम्हें देखते ही पहचान लिया था उन्होंने और जाने से पहले माफ़ी भी मांग ली। अब हमें भी मुक्त कर दो अन्नी। बहुत बुरा सुलूक किया हमने तुम्हारे साथ बच्ची। हमें माफ़ कर दो। वो ज़ार-ज़ार रोये जा रहे थे और रोते-रोते पैर पकड़ लिए मेरे। 

मैं फिर से स्तब्ध हो गई। पैर खींचना चाह रही थी पर खींच नहीं पा रही थी। मेरी ये हालत देख बड़ी मुश्किल से वो लोग उन्हें बाहर लेकर गए। 

रिलैक्स अनाहिता, तुम्हारी हालत ठीक नहीं है। आराम की सख़्त ज़रूरत है। डाॅo चौहान ने तुम्हें नींद का इंजेक्शन देने को कहा है। अब तुम रेस्ट करो। जैसे ही तुम्हारी रिपोर्ट आती है, तुम्हें बता दिया जाएगा..... सिस्टर ने इंजेक्शन लगाते हुए कहा।

नींद की दवा क्यों..... मुझे अभी नहीं सोना। मुझे मम्मा से मिलना है। वो बस आती ही होंगी थोड़ी देर में... मैं परेशान हो गई। 

टेक रेस्ट अनाहिता, यू रियली नीड इट.... वो कहकर चली गईं। 

नहीं, मुझे नहीं सोना। मुझे मम्मा से मिलना है। मैं बड़बड़ाते हुए अपना फ़ोन ढूंढने लगी। डायल लिस्ट खोली और मम्मा का नंबर डायल करना चाहा पर स्क्रीन धुंधली नज़र आने लगी। मैं ज़बरदस्ती आंख खोलने की कोशिश कर रही थी पर....... 

धीरे-धीरे मैं गहरी नींद की आगोश में चली गई। फ़ोन मेरे हाथ में अब भी था, जिसमें लास्ट डायल ममता सिस्टर शो कर रहा था।


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✍️✍️प्रियन श्री ✍️✍️

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