इसी बीच एक हृदयविदारक घटना ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। हाल ही में सिनेमा जगत के एक उम्दा कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की दुःखद आत्महत्या की ख़बर आई । फ़िल्म जगत में वंशवाद, बाहरी कलाकारों के साथ असहयोगपूर्ण रवैये के साथ - साथ आरोप - प्रत्यारोप का सिलसिला दुर्भाग्यपूर्ण रूप से अब भी जारी है... पर इन सबके बीच एक सबसे महत्वपूर्ण बात कहीं पीछे रह गई। वो ये कि सुशांत पिछले कुछ समय से कथित रूप से गंभीर डिप्रेशन से ग्रस्त थे और इलाज भी करवा रहे थे।
"डिप्रेशन" यानि "अवसाद या तनाव"... वो मानसिक अवस्था जिसमें व्यक्ति बहुत भारी दबाव से गुज़र रहा होता है। ये दबाव शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक भी हो सकता है। वास्तव में तनाव या अवसाद को परिभाषित करना कठिन है क्योंकि यह कई भावनाओं का मिश्रण होता है।.... और सबसे बड़ी बात - ये एक बीमारी है।
एक ऐसी बीमारी जो कब हमें अपनी चपेट में ले लेती है, हमें पता ही नहीं चलता, एक धीमे ज़हर की तरह...। जागरूकता का अभाव तथा डिप्रेशन को बीमारी न मानना - इसके इलाज में सबसे बड़े बाधक हैं। बजाय समय पर इलाज के, पता तो तब चलता है, जब कोई बड़ी दुर्घटना घट जाती है। यही नहीं, इसके बाद भी इसे बेवकूफ़ी और कायरता का नाम दिया गया है। ये पल्ला झाड़ने की मानसिकता ही रोगियों को अपना मर्ज़ खुलकर स्वीकार करने से रोकती है। इसके अलावा कई बार सामाजिक शर्मिंदगी के डर से भी लोग खुद को व्यक्त नहीं कर पाते और घुट- घुट कर जीना, अपनी नियती स्वीकार कर लेते हैं। जिसकी परिणति कई बार असामयिक मृत्यु का कारण बनती है।
WHO ( विश्व स्वास्थ्य संगठन ) के अनुसार यह एक Common Mental Disorder है तथा दुनिया भर में 264 मिलियन ( साभार - WHO.int ) से अधिक लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। जिसमें सभी उम्र के लोग शामिल हैं... बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक।
इतिहास में अवसाद का सर्वप्रथम लिखित प्रमाण ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में प्राप्त होता है। जब इसे शारीरिक अथवा मानसिक अवस्था न मानकर, आध्यात्मिक अवस्था माना जाता था और चर्च के पादरियों द्वारा ठीक किया जाता था। प्राचीन ग्रीस (यूनान), रोम, चीन तथा मिस्र में भी यही प्रचलित मान्यता थी। हालांकि कालांतर में यूनानी एवं रोमन चिकित्सकों ने इसे मानसिक अवस्था मानकर इलाज करना शुरू किया। तब बड़ी ही रोचक चिकित्सा पद्धतियों से इसका इलाज किया जाता था, जैसे - मालिश, खानपान, जिम्नास्टिक तथा गधे के दूध का सेवन आदि। हालांकि "पश्चिमी चिकित्सा शास्त्र के जनक - हिप्पोक्रेटस" ने सर्वप्रथम इसे बीमारी माना।
डिप्रेशन को बीमारी मानना ही इससे जंग का पहला चरण है। दूसरा चरण है इसके लक्षणॊं की पहचान करना ताकि हम समझ सकें कि हम स्वयं या परिवार या जान - पहचान में कोई डिप्रेशन से पीड़ित है। ये लक्षण निम्नलिखित प्रकार के हैं :-
1. नकारात्मकता - डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति आमतौर पर निराशा से घिरा रहता है। मन में हमेशा नकारात्मक विचार आते हैं। जैसे - अब कुछ नहीं हो सकता, सब ख़त्म हो गया, मेरे साथ कुछ भी ठीक नहीं हो सकता, मैं मनहूस हूँ आदि।
2. थकान - डिप्रेशन का एक बड़ा लक्षण थकान की अधिकता होना है। पीड़ित व्यक्ति बिना किसी श्रम के थकावट का अनुभव करता है। इसके अलावा या तो नींद नहीं आती या बहुत ज़्यादा आती है।
3. चिंता - इस रोग में मरीज़ हर बात में अत्यधिक चिंता करने लगता है। बिना आधार की चिंता तथा अपनी परेेशानी न बता पाने की झिझक, चिड़चिड़ाहट उत्पन्न करती है। इससे उसका व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन प्रभावित होने लगता है।
4. भूख का एहसास - डिप्रेशन में रोगी को या तो भूख नहीं लगती या बहुत ज्यादा खाने लगता है। पर रोगी को स्वयं नहीं एहसास होता इसके बारे में।
5. बेकाबू भावनाएँ - डिप्रेशन में रोगी बिना बात के कभी हंसता है तो कभी रोता है। वो स्वयं असमंजस में रहता है। ये डिप्रेशन के सबसे प्रभावी लक्षणॊं में से एक है।
6. एकाग्रता की कमी - डिप्रेशन में रोगी किसी भी काम में एकाग्रचित नहीं हो पाता है। ध्यान लगाने वाले कामों में रोगी को काफ़ी समस्या का सामना करना पड़ता है।
7. मृत्यु के प्रति झुकाव - डिप्रेशन में रोगी मृत्यु के बारे में विचार करने लगता है। उसे अपनी सारी समस्याओं का हल आत्महत्या में दिखाई देने लगता है।
लक्षणों के निदान के पश्चात तीसरा चरण है इलाज का। एक लंबे संघर्ष एवं समय के साथ जागरूकता विकसित हुई और गंभीर शोधों से प्राप्त ज्ञान के आधार पर इसका इलाज भी संभव हुआ।
ज्ञात जानकारी के अनुसार डिप्रेशन की वजह से दिमाग के 3 हिस्से प्रभावित होते हैं - हिप्पोकैंपस, एमिग्डेला और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स। ये तीनों ही मस्तिष्क के बहुत महत्वपूर्ण भाग हैं जो मनुष्य की निर्णय लेने की क्षमता, याददाश्त और भावनाओं पर नियंत्रण रखते हैं। अतः इनके प्रभावित होने से मनुष्य का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।
इस बीमारी के 3 चरण हैं - निम्न, मध्यम एवं गंभीर। इसके इलाज में तनाव रोधी दवाईयां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये मुख्यतया 4 प्रकार की होती हैं - Serotonin, Norepinephrine, Dopamine इत्यादि । (दवाईयां बिना चिकित्सकीय परामर्श के कभी न लें) इन दवाओं से मष्तिष्क का रासायनिक संतुलन काफ़ी हद तक सुधर जाता है। हालांकि इनके असर करने में 3 से 4 हफ़्तों का समय लगता है। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि डिप्रेशन किस श्रेणी का है। सामान्यतया 90% मरीज़ तनाव रोधी दवाईयों से ठीक हो जाते हैं किंतु मध्यम एवं गंभीर रूप से पीड़ित मरीज़ों का इलाज Psychological तथा Pharmacological पद्धति द्वारा किया जाता है।
निश्चित रूप से सुशांत भी अपना बेहतर इलाज करवा रहे होंगे। फ़िर भी हमारे लिए सुशांत की मृत्यु दुःखद के साथ - साथ आश्चर्यजनक भी है क्योंकि हमने उनकी आख़िरी फिल्म "छिछोरे" देखी थी। जिसका विषय ही आत्महत्या का प्रतिरोध था, चाहे स्थिति जो भी हो.... ।
वैश्विक स्तर पर डिप्रेशन के मरीज़ों की संख्या तथा बढ़ती मृत्यु दर के आंकड़े डराने वाले हैं। ये बीमारी बहुत तेजी से पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रही है और हस सब बेख़बर बने हुए हैं। आमतौर पर लगभग हर इंसान जीवन में कभी न कभी डिप्रेशन की चपेट में आता ही है। पर जानकारी के अभाव में वो कब ठीक हो गया, उसे खुद को पता नहीं चलता। या गंभीर अवसाद की स्थिति में जानलेवा कदम उठा लेता है। पर न तो व्यक्ति स्वयं और न ही परिवार जनों को समझ आता है कि ऐसा क्यों हो रहा है...??? अधिकतर तो लोग ओझा - तांत्रिक का सहारा लेते हैं। उनके विचार में ये भूत-प्रेत का चक्कर या उपरी साये की वजह से है। ऐसे में बात बनने के बजाय बिगड़ जाती है।
सोचने का बात यह है कि ऐसी क्या परिस्थितियां बन जाती हैं जब मज़बूत से मज़बूत इच्छाशक्ति वाला इंसान भी हिम्मत हार जाता है...!!! दरअसल जरूरी नहीं है कि यह कोई आकस्मिक घटना हो। काफ़ी लंबे समय से कोई परेशानी, बचपन की कोई बुरी घटना या किसी दुर्घटना के कारण व्यक्ति इसकी चपेट में आ जाता है। कोरोना काल में भी रोज़ी-रोटी का संकट, नौकरी चली जाना या वेतन में कटौती, ऐसी कई परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं जिससे डिप्रेशन में बढ़ोतरी हुई है।
ऐसी स्थिति में काउंसिलिंग एक अच्छा और सुलभ विकल्प है। इसके द्वारा डिप्रेशन के कारणों की पहचान की जाती है। चूंकि यह एक मानसिक अवस्था है तो रोगी के मन में क्या चल रहा है, ये जानना बहुत जरूरी है। इसी से इसके इलाज के रास्ते खुलते हैं। कई मामलों में केवल काउंसलिंग तथा कई मामलों में काउंसलिंग के साथ- साथ दवाईयां लेने से ही मरीज़ ठीक हो जाता है। पर स्तिथि गंभीर होने पर ECT (Electroconvulsive therapy) भी दी जाती है।
दवाईयां और थेरेपी अपनी जगह हैं। पर ऐसी स्थिति में अपनों का साथ बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। एक तो ये बीमारी इंसान को सबसे दूर कर देती है, ऊपर से अकेलापन उसे अंदर तक तोड़ देता है। इस परिस्थिति में परिवार एवं दोस्त संजीवनी साबित होते हैं। अतः केवल watsapp और fb पर chat करना ही पर्याप्त नहीं है। बल्कि नियम बना लें कि weekend में सबसे फोन पर बात करनी है तथा मिलना - जुलना भी बनाए रखें।
अपने अपनों को ये एहसास दिलाएं कि आप उनकी हर अच्छी - बुरी परिस्थिति में उनके साथ हैं। उनमें ये विश्वास जगाएं कि वे अपनी हर उलझन आपके सामने बेझिझक रख सकें, बिना ये सोचे कि आप क्या उनके बारे में क्या सोचेंगे या कहीं उनका मजा़क तो नहीं उड़ाएंगे। क्या पता कब कोई एक छोटा सा सहारा ढूंढ रहा हो और आपके द्वारा दिया गया ये छोटा सा दिलासा, उसमें फिर से जीवन जीने की उम्मीद लौटा दे....
यदि आपके पास अपनी परेशानी बांटने वाला कोई नहीं है तो भी चिंता की बात नहीं है। कई गैर सरकारी संगठन, केंद्र तथा राज्य स्तर पर हेल्पलाइन नंबर पर सेवा प्रदान करते हैं। इनकी सूची google पर डिप्रेशन हेल्पलाइन नंबर पर आसानी से प्राप्त हो जाती है। जिनमें "लाइफलाइन फाउंडेशन (कोलकाता), आसरा तथा कूज (देश भर के लिए), स्पंदन (इंदौर), आशा हेल्पलाइन (चंडीगढ़) " आदि प्रमुख हैं।
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✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️
बहुत सही कहा आपने
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
Deleteबेहतरीन जानकारी......आपने ज्वलंत समस्या पर इस तरह से समझा कर वाकई बहुत अच्छा काम किया हैं.....
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
DeleteGood and timely article well framed,appreciate the author for throwing light on the subject.
ReplyDeleteDr.Subramonian
Director
Dr.A.P.J.Abdul Kalam Research Centre
धन्यवाद 🙏
Deleteआप सभी का बहुत - बहुत आभार 🙏
ReplyDeleteसही कहा आपने श्रीमान हममे से अधकांश लोग इस बारे में जागरूक नहीं हैं ।हम डिप्रेशन को हालात से लड़ने की क्षमता के रूप में देखते हैं।पर सर मेरा मानना हैं की यदि व्यक्ति के जीवन में आध्यात्म शामिल हो जाये तो वह ऐसी विकट परिस्थियों से बचा जा सकता है ।हमारे देश की ज्यादातर महिलाएँ अध्यात्म के बल पर ही ऐसी विकट परिस्थितियों से उबर जाती हैं।
ReplyDeleteउचित ही कहा आपने। किंतु यदि यह विकट स्थिति उत्पन्न हो ही जाए तो बिना विलंब किये चिकित्सकीय सहायता लेनी चाहिए 🙏
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
Deleteसरल शब्दोमे सटीक जानकारी दी
ReplyDeleteखूब खुब धन्यवाद
धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत ही अच्छा प्रयास है इस कठिन समय में, महामारी से लोगों में इतनी दहशत है ही साथ ही तनाव, कुंठा, अकेला पन मानव को सुकून से रहने नहीं दे रहा है। कम से कम ऐसे प्रयास से व्यक्तियों में जागरूकता तो आएगी।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार 🤗
DeleteVery nice
ReplyDeleteधन्यवाद 🤗
DeleteVery important knowledge
ReplyDeleteधन्यवाद 🤗
DeleteVery nice 👌👌
ReplyDeleteDepression create than after hendel yourself really good writing situation about it
ReplyDeleteSunilKumar Shah
आभार 🙏
Deletegood information,superb keep it up 👌
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
DeleteBht hi khub...thank you..kripiya aise sajaagta felaate rahe..
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
DeleteBahut achhe
ReplyDeleteधन्यवाद 🤗
DeleteBahut badiya hai. Aur achhi jankari bhi hai
ReplyDeleteबहुत - बहुत आभार 🙏
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