Thursday 27 August 2020

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 2) 🌺🌺

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कल तक मैं खुद में ही गुम, एक अनजान सी लड़की थी। जिसका इस दुनिया में कोई हाल-चाल तक लेने वाला नहीं था..... नितांत अकेली। पर इस दुर्घटना ने जैसे सब कुछ बदल दिया। तीन दिन की बेहोशी के बाद आया होश, मेरे लिए "नये जन्म" जैसा था।  बरसों बाद अपनेपन का एहसास हुआ था, वो भी अनजानों से... 

पूरा हॉस्पिटल स्टाफ़ छोटे से बच्चे की तरह मेरी देखभाल करता था और उस प्राइवेट वार्ड के बेड पर निःशक्त लेटी मैं.... सारा दिन इसी सोच में डूबी रहती कि दुनिया में रिश्ते - नातों का क्या मतलब है...!!!

जिनसे ख़ून का रिश्ता था, उनका ख़ून तो सालों पहले ही सूख गया। एक भरे - पूरे घर - ख़ानदान से अनाथाश्रम तक के सफ़र ने मुझे, मुझमें ही कहीं मार दिया था। साथ ही मर गई थीं मेरी सारी संवेदनाएं.....आख़िरी बार तब रोई थी, जब मेरे अपने मुझे अनाथाश्रम छोड़ कर जा रहे थे। तब, जब अपनों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।

"मुझे छोड़ कर मत जाइए प्लीज़"....

एक छोटी-सी बच्ची, जिसने अपना सब कुछ खो दिया था। गिड़गिड़ा रही थी... उन्हीं अपनों के आगे जो कभी उसे सर-आंखों पर बिठाते थे। समझ ही नहीं पा रही था कि ये क्या हो रहा है उसके साथ.... और क्यों..????

जल्द ही समझ आ गया कि मैं उनके सर का बोझ थी, जिसे वो बड़ी आसानी से उतार कर चलते बने थे। उसके बाद से मैं कभी नहीं रोई, क्योंकि जानती थी... अब कोई चुप कराने और आंसू पोंछने नहीं आएगा। वैसे भी, ये वाला "घर"  सिर्फ़ नाम का घर था... जो सर पे छत, तन पर कपड़े और मुंह में निवाले से अधिक नहीं था मेरे लिए। 

फिर भी इस बुरे वक्त में अगर कोई मेरे साथ था तो वो थी जानू .....मेरी डॉल।  4 साल की थी जब पापा से ज़िद की थी कि मुझे भी मेरी जानू चाहिए। दरअसल पापा, मम्मा को जानू कहते थे। पूछने पर बताते कि जैसे बेडटाईम स्टोरी के जादूगर की जान तोते में बसती थी, वैसे ही मेरी जान आपकी मम्मा में बसती है। अब तो हक़ीक़त की दुनिया से बेख़बर मैं, पापा की जादूई कहानियों की दुनिया में डूबती - उतराती रहती। 

एक दिन फ़्राॅक का कोना पकड़े पापा के सामने खड़ी हो गई। 

क्या हुआ प्रिंसेज़...!!! सारी फ़ाइलें एक तरफ़ करते हुए उन्होंने पूछा। 

 पापा, मेली जान किछमें बत्ती है...??? 

आप बताओ... वो मुस्कुराए और उल्टा सवाल मुझ पर दाग दिया। 

मुजे नई पत्ता... जवाब तो वैसे भी मेरे पास नहीं था। 

उदास देखकर उन्होंने मुझे गोद में बिठा लिया। कुछ देर सोचने के बाद मैंने अगला सवाल किया। 

आपको आपकी जानू कहाँ छे मिली ?? 

मेरे पापा लेकर आए थे.... उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। 

मुजे बी मेली जानू चाईये.... आंखों में चमक भरते हुए मैंने कहा। 

लेकिन प्रिंसेज़, जानू तो तब मिलती है जब आप बड़े हो जाओ। आप तो अभी बहुत छोटे हो। 

बली तो ओ गई ऊं। देखिए.... मैं तुरंत ही गोद से उतरी और तन कर खड़ी हो गई। 

अले हाँ, आप तो छच में बली हो गई हैं... पापा ने आंखें बड़ी करते हुए आश्चर्य से कहा। 

ठीक है फ़िर, कल आपकी जानू आ जाएगी। 

छच्ची... उनके घुटनों पर हाथ रख कर मैंने आश्वासन चाहा।

मुच्ची... मेरे माथे को चूमकर उन्होंने विश्वास दिलाया। 

मैं मारे खुशी के पापा से लिपट गई और फिर भागते हुए सीधा मां के पास किचन में गई ये खुशखबरी देने। 

अगली सुबह जब नींद खुली तो एक बड़ी-सी गुड़िया मेरे पास लेटी थी.... मेरी जानू।


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✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️

Wednesday 26 August 2020

🌹🌹..मेरे अल्फाज़...🌹🌹


 

Friday 14 August 2020

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 1) 🌺🌺

 मेरा सर तेज़ दर्द से फट रहा था... पर चाहकर भी मेरा हाथ सर तक नहीं जा पा रहा था। मेरा पूरा शरीर सुन्न पड़ चुका था। अपनी बची-खुची ऊर्जा समेट कर मैं बस अपनी आंखें ही खोल पाई। अधखुली आंखों के सामने जो सबसे पहले दिखा, वो था गहरा लाल रंग.... यानि कि मेरा ख़ून। बचपन से ही ख़ून देखकर मुझे घबराहट होती थी। चक्कर आने लगते थे... पर आज जैसे कुछ महसूस ही नहीं हो रहा सिवाय दर्द के... ।

मैं.... अनाहिता शर्मा।  मेरी नई-नई नौकरी लगी है इस शहर में। नया शहर, नये लोग... और नये रास्ते। ये तो अच्छा हुआ कि रहने के लिए फ़्लैट, मेरे कार्यालय के पास ही मिल गया इसलिए आने - जाने का खर्च बच जाता है। मैं हर रोज़ नये रास्ते ढूंढा करती कार्यालय जाने के... ताकि कोई नज़दीक का रास्ता ढूंढ सकूं।

आज भी एक नये रास्ते से घर लौट रही थी। ज़्यादा चहल-पहल नहीं थी। आम सड़कों की भाग-दौड़ से दूर। मुझे ऐसी शांत राहें हमेशा से पसंद हैं, जिनपे मैं सुकून से चल सकूं।... पर अचानक ही पीछे से एक ट्रक का हार्न सुनाई दिया। मुड़कर देखा तो सांसें थम गईं... ट्रक ऐसे चल रहा था जैसे उसके ब्रेक फ़ेल हो गये हों। मैं तुरंत ही रास्ते से उतर कर सड़क से दूर जाने लगी... पर होनी का लिखा कौन टाल सकता है..!! 

उसके बाद मेरी आंखें अब खुली थीं। तभी एक तेज़ रोशनी चमकी। सुना था कि मौत के ठीक पहले ऐसी ही रोशनी दिखाई देती है। दिल बैठ गया इस ख़्याल से। धीरे-धीरे कुछ सफ़ेद साये मेरी ओर बढ़ते दिखे। क्या मेरा अंत समय आ गया है...??? नहीं... अभी मुझे जीना है।

"हे ईश्वर, मुझे बचा लो।" जीवन भर नास्तिक रहने वाली मैं, आज इस आख़िरी वक्त में ईश्वर पर भरोसा कर रही थी। बस..... उसके बाद क्या हुआ, याद नहीं।

इस बार किसी की नर्म हथेलियों के स्पर्श से मेरी आंखें खुली। सामने सफेद कपड़ो में एक देवी नज़र आई। मुझे लगा मैं स्वर्ग पहुंच गई हूँ।

"अब कैसा लग रहा है बेटा....!!!" 

एक अर्से बाद ये शब्द सुन कर मन भींग गया। 

तुम्हारा एक्सीडेंट हो गया था। सीवियर ब्रेन इंजरी हुई थी... पर 4 डॉक्टरों की टीम ने 7 घंटे तक तुम्हारा आपरेशन किया। और अब तुम ख़तरे से बाहर हो।

क्यों.... मुझ अनाथ का क्या रिश्ता था उनसे जो उन्होंने मुझे बचाने के लिए इतनी मेहनत की..?? मैं बोल तो नहीं पा रही थी पर ऐसे कई विचार मन में आ रहे थे।

तभी डाॅक्टर आये। मेरा चेक-अप किया... और मैं सुन्न पड़ी ये सब देख रही थी। जाने से पहले उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखकर कहा - "जल्दी से ठीक हो जाओ।" 

ये मेरी श्रद्धा थी या धन्यवाद.... मेरी आंखों से आंसू ढुलकने लगे।

ये वो "वाइट वारियर्स" थे जिन्होंने मौत से जंग लड़के मेरी ज़िन्दगी को जीता था....मेरे लिए...उपहारस्वरूप।


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✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️

नव सृजन

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 11) 🌺 🌺

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