Saturday, 2 January 2021

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 6) 🌺 🌺

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हर तरफ़ अफ़रा - तफ़री का माहौल था। एक अनजानी सी बीमारी ने देश और दुनिया में पैर पसारना शुरू कर दिया था। स्थिति भयावह से विस्फोटक हो चली थी। लोग मर रहे थे और ये संख्या हर पल दूनी होती जा रही थी। दुनिया भर की सरकारें इस बीमारी से बचाव के के लिए हर संभव प्रयास कर रही थीं। उनमें से एक लाॅकडाउन भी था, जो एक तरह से बिल्कुल नया था हम सबके लिए.... ।

हमारे देश में हालात फिर भी बेहतर थे; पर दुनिया के कई देशों में इस बीमारी ने तांडव करना शुरू कर दिया था... मौत का तांडव। सामान्य  सर्दी-जुकाम की तरह शुरू होने वाली ये बीमारी जल्द ही सांस लेने की तकलीफ़ में बदल जाती। जब तक समझ आता, बहुत देर हो जाती। इस बीमारी का सबसे दर्दनाक पहलू ये था कि लोग अपने प्रियजनों को आख़िरी बार न तो देख सकते थे और न ही उनका अंतिम संस्कार कर सकते थे।

इस बीमारी को वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस  नाम दिया। कोरोना पर पिछले कई दिनों से ख़बरें आ रही थीं पर मैं खुद  में ही इतनी गुम थी कि दीन - दुनिया से बेख़बर रहती थी। टीवी पर चलती ख़बरों से हर पल एक नई जानकारी सामने आती। उन्हीं में से एक न्यूज़ से मेरा माथा ठनका। कई सालों पहले फैले एक जानलेवा सार्स वायरस.... और कोरोना --- एक ही प्रजाति के वायरस हैं।

धुंधली सी कुछ यादों ने मुझे आ घेरा। ये वही वायरस था जिस पर मेरे पापा रिसर्च कर रहे थे और इसी की वजह से हमारी हंसती-खेलती ज़िन्दगी जल कर ख़ाक हो गई। मेरा जी घबराने लगा। क्या वही मौत का तांडव फिर से शुरू होने वाला है...???

मैं मां का इंतज़ार करने लगी। अब मैं फिर से अकेली नहीं होना चाहती थी.... लेकिन कल की नाइट शिफ्ट के बाद क्या आज वो आएंगी..!!! तभी मेघना सिस्टर मेरी दवाईयां लेकर आईं। 

मम्मा कब आएंगी....!!! मैं झट से पूछ बैठी। 

उनके माथे की सिलवटों को देख मुझे होश आया। 

मेरा मतलब है ममता जी की आज कौन सी शिफ्ट है..??

आज उनकी छुट्टी है। अब वो कल सुबह आएंगी ---- लेकिन पता नहीं आज घर कैसे गई होंगी..!!! वो अनमनी सी हो गईं। 

क्या मतलब, घर कैसे गई होंगी...???

अभी सुबह ही तो बताया था कि लाॅकडाउन लग गया पूरे देश में। लाॅकडाउन मतलब सब कुछ बंद..... न बाज़ार, न दुकानें, न स्कूल - काॅलेज, न दफ़्तर और न ही गाड़ी - मोटर; सब बंद..... पैदल ही जाना पड़ा होगा।

पता तो रात को ही चल गया था, पर ममता दीदी बहुत खुश थीं.... बहुत दिनों बाद इतनी खुश थीं, तुम्हारे साथ...। उनका ये स्पेशल डे बर्बाद नहीं करना चाहती थी इसीलिए नहीं बताया।

अरे हाँ, ये लो तुम्हारा फ़ोन। दीदी ने मुझे बनवाने के लिए दिया था। मैंने उनका नंबर भी सेव कर दिया है इसमें... कहते हुए मुस्कुरा दीं वो।

थैंक्यू... जवाब के साथ मैं भी मुस्कुरा उठी।

सालों से चलती आ रही मेरी सीधी-सपाट ज़िन्दगी इन दिनों उस आकाश झूले की तरह हो गई थी, जो पलक झपकते ही कभी ऊपर जाता था, तो कभी नीचे.... । पहले मेरा एक्सीडेंट, फिर मम्मा का आना; और अब ये कोरोना। अभी जाने और क्या-क्या होना बाकी है...!!!!

बस दिल से एक दुआ निकलती, कि अब और बुरा नहीं...।

मेघना सिस्टर के जाने के बाद मैंने कांपते हाथों से मम्मा का नंबर डायल किया। रिंग की आवाज़ के साथ जाने क्यों दिल ज़ोरों से धड़कने लगा..!!!

हैलो.... मम्मा की आवाज़ थी।

मन अथाह भावों से भर उठा पर शब्द एक भी न निकला।

हैलो.... दुबारा आवाज़ आई।

मम्मा....... 

अन्नी बेटा, तुम्हारा फोन ठीक हो गया...!! मैं अभी मेघना को फोन करके थैंक्यू बोलूंगी।

मम्मा आप कब आओगे, मुझे अच्छा नहीं लग रहा। बहुत याद आ रही है आपकी.... बोलते - बोलते मैं रूआंसी हो गई।

उदास नहीं होते मेरा बच्चा, मैं आती हूँ ना शाम को। 

पर आपकी तो कल सुबह की शिफ्ट है ना....। आप कैसे  बार-बार ट्रैवेल करेंगी, पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी तो बंद हो गए हैं...!!!!

अरे बाबा रे... इतनी फ़िक्र। आपकी मम्मा बहुत स्ट्रांग है बच्चा। वैसे भी, मैं रात को आपके पास ही रुकूंगी। पैकिंग भी तो करनी है आपकी ; और सुबह डिस्चार्ज पेपर भी बनवाने हैं ताकि कल की ड्यूटी करके आपको साथ ही लेकर घर लौट सकूं।

घर.... मुझे मेरे कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था लेकिन मम्मा की बातों में अधिकार की आभा साफ़ झलक रही थी। 

हां बच्चा, अब आपकी तबियत बहुत बेहतर है। अब घर पे आराम करना है बस....। कुछ वक्त बाद आप बिल्कुल ठीक हो जाओगे। आप आओगे ना बच्चा..... मम्मा के पास रहने ??? 

मैं..... आपके साथ.... घर...... सच मम्मा....!!!!! मैं रोने-रोने को हो आई। 

हां बच्चा, अब मैं आपको कभी भी खुद से दूर नहीं जाने दूंगी। हमेशा अपने आंचल में छुपा के रखूंगी अपनी अन्नी को....

आप रोना नहीं मेरा बच्चा.... मम्मा जल्दी से आती है आपके पास। ओके...!!!!

ओके मम्मा...... फोन रखते ही मैं रो पड़ी। 

ज़िन्दगी भी क्या शै है.....!!! कभी एक झटके में सब छीन लेती है, तो कभी पल में इतना कुछ दे देती है कि दामन छोटा पड़ जाए। एक बिन माँ की बच्ची को माँ  मिल जाए तो ज़माने भर की दौलत कम है उसके आगे। मेेरा का हाल भी कुछ ऐसा ही था।

आजकल पांव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे..... बिल्कुल हवा में उड़ रही थी मैंं ; सच में..... इतनी खुश थी, इतनी खुश..... कि कोरोना, लाॅकडाउन कुछ याद ही नहीं रहा। कल मैं घर जाऊंगी; अपने घर.... जैसे सदियाँ बीत गई हों घर में कदम रखे। 

अपनी खुशियां संभाल कर रखने की कोशिश कर ही रही थी कि ज़ोर - ज़ोर से रोने की आवाज़ सुनकर मेरी तंद्रा टूटी। मुझसे रहा नहीं गया इसलिए उठकर दरवाज़े को थोड़ा सा खोलकर खड़ी हो गई। शोर सुनकर पता चला कि मेरे बगल वाले कमरे में एडमिट मरीज़ नहीं रहे...। 

मैं उदास हो गई। किसी अपने को खोने का दर्द मैं अच्छी तरह समझती हूँ। चुपचाप आकर बेड पर लेट गई। ऐसे समय में लोगों को सांत्वना देना मेरे लिए बहुत मुश्किल भरा होता है। जो चीज़ें मैं खुद आजतक नहीं समझ पाई, वो किसी और को कैसे समझाऊं....!!!!!

बहरहाल मैं फिर से घर के सपने देखने लगी। जहां मैं और मम्मा साथ-साथ रहेंगे। मम्मा ने ये तो कहा कि वो शाम को आएंगी पर कितने बजे तक.... ये तो उन्होंने बताया ही नहीं। फोन करके पूछूं क्या..!!! नहीं-नहीं.... बेचारी थक गई होंगी और फिर डिनर भी तो बनाना होगा उन्हें। ज़रूर मेरे लिए कुछ स्पेशल बना रही होंगी। उन्हें डिस्टर्ब नहीं करूंगी।

मम्मा का घर कितनी दूर होगा यहां से.... पैदल आने-जाने में वक्त भी तो लगता है। इसी उधेड़बुन में व्यस्त थी कि दरवाज़े से आती खुसुर-फुसुर ने मेरा ध्यान खींचा। वैसे लोगों की बातें छुपकर सुनना पसंद नहीं मुझे; पर न जाने किस ख्याल में धीमे कदमों से बिना आहट किये दरवाज़े से कान लगा कर खड़ी हो गई।

ये क्या पाप-पुण्य का रोना लेकर बैठ गई तुम भाभी के सामने... हालत देखी रही हो उनकी, ये वक्त है इन बातों का...!!!!! सब कुछ लुट गया उनका और तुम....

उनका सब लुट गया और हमारा.....हमारा क्या बचा है नरेंद्र ?? क्या अब तक आपकी आँखें नहीं खुलीं !!! ये हमारे पापों का फल है जो हमने, हम सबने मिल कर किया था। हमारी फूल सी बच्ची जो हमें बड़ीमम्मा-बड़ेपापा कहते नहीं थकती थी, उसे हमने...... इतना बड़ा घर-परिवार होते हुए भी कोई अपना न हो सका उसका। 

सच कहते हैं, माँ-बाप से बढ़कर कोई सगा नहीं होता। उस बेचारी नन्हीं-सी जान के सर से माँ-बाप का साया क्या उठा..... उसके सो काॅल्ड अपने ही दुश्मन हो गये। जिस धन-संपत्ति के लिए हमने ये पाप किया, वो सब उसके पिता की ही तो देन थी। क्या थे आप दोनों भाई..... छोटे - मोटे व्यापारी !!! उसने अपने खून-पसीने की कमाई से आपको इतने बड़े बिज़नेस का मालिक बनाया, महल जैसा घर बनवाया जिसमें वो साल के केवल कुछ दिन ही रह पाता था..... क्योंकि घर की स्थिति सुधारने के लिए वो बेचारा विदेश में पड़ा था। 

हमसे बड़ा एहसान फ़रामोश और कौन होगा दुनिया में....!!! जिस भाई ने चार पैसे का आदमी बनाया, समाज में रूतबा और इज़्ज़त दिलवाई उसी के साथ इतना बड़ा धोखा करते हमारी रूह भी नहीं कांपी.... और देखिये ना क्या बचा हमारे पास..???? वो महल जैसा घर बेचकर हमें यहां आना पड़ा। 

जिन बेटों के लिए हम ये पाप कर रहे थे, वो भी हमें छोड़कर चले गए। पहले भाईसाहब का बड़ा बेटा ज्यादा लाड़-प्यार में गलत सोहबत की बलि चढ़कर, जरायम की दुनिया में खो गया। फिर छोटे बेटे को पैरालिसिस हो गया। चार साल तक बेड पर रहा और एक दिन भगवान को उस पर तरस आ गया। हमारे अपने दोनों बेटे..... वो कब तक हमारे गुनाहों से बचे रहते..!!! जानते हैं उस कार एक्सीडेंट में हम क्यों बच गये..... क्योंकि अभी तक हमने अपने पापों का प्रायश्चित नहीं किया है। 

भाईसाहब भी दिल पर बोझ लेकर ही गये हैं नरेंद्र..... और दीदी, मैंने देखा है उनकी आंखों में पछतावा। अपने घर की लक्ष्मी को अपने हाथों ही धक्के मारकर बाहर निकाल देने का पछतावा। वो सिर्फ़ बेटी नहीं थी हमारे घर की.... श्री  थी। केवल धन-दौलत ही नहीं, सुख-शांति और खुशहाली भी उसी से थी। सी लक्ष्मी को हमने अनाथाश्रम भेज दिया। 

तुम ठीक कहती हो मनोरमा। दिल के एक कोने से हर वक़्त आवाज़ आती थी कि..... पर मेरी आंखों पर अहंकार जो पर्दा पड़ा था, वो मुझे ये सब स्वीकार ही नहीं करने देता था। पता नहीं हम भी कभी प्रायश्चित कर पायेंगे या भाईसाहब की तरह ही एड़ियां रगड़ते हुए......।

मनोरमा, नरेंद्र, बड़ीमम्मा - बड़ेपापा, अनाथाश्रम..... ये सारे शब्द एक साथ मेरे जेहन में कौंधने लगे। ज़रा उचककर मैंंने दरवाजे के कांच से उन लोगों को देखने की कोशिश की। अच्छा - ख़ासा वक्त बीत चुका है फिर भी मैंने देखते ही पहचान लिया। भूल भी कैसे सकती हूँ उन्हें......!!! मैं वहीं दरवाजे के पास निढाल होकर बैठ गयी। वो पूरी घटना सजीव हो गई मस्तिष्क में।

यानि वो मेरे बड़ेपापा थे जो अभी..... और ये भी मेरे..... सोचने-समझने की शक्ति ही खो बैठी मैं। अभी थोड़ी देर पहले तक मैं अपने नए घर जाने की खुशी में बावरी हुई जा रही थी और अचानक ही मेरा अतीत सामने आ खड़ा हुआ। ठीक से खुश भी नहीं हो पाई थी कि आंसुओं के सैलाब ने फिर से मुझे डुबो दिया। क्या खुशियों की कोई दुश्मनी है मुझसे..... क्यों वो बस मुझे छूकर गुज़र जाती हैं ???? अब तो खुशियों से भी डर लगने लगा है।


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✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️

15 comments:

  1. उम्दा प्रस्तुति,🙏

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  2. Superbbbbb👍👍👍👍

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  3. बहुत खूबसूरत कहानी है

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    1. जी बहुत-बहुत शुक्रिया 🙏..... कृपया जुड़े रहिए क्योंकि कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई है।

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  4. बहुत अच्छा लिखा है आपने👌👌

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  5. Heart touching story❤

    Harsh parmar

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  6. दीदी बहोत ही सुंदर !!!

    👌👌👌

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