Monday, 21 September 2020

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 5) 🌺🌺

पिछला भाग यहां पढ़ें 👈


मेरे मन ने आश्वासन दिया। हाँ, ये वही देवी थी। कभी-कभी कोई अनजान हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण हो जाता हैै..!!! जब तीन दिन की बेहोशी के बाद मेरी आंखें खुली थीं तो वो मेरे लिए स्वर्ग की देवी थीं। फिर पता चला कि मैं हाॅस्पिटल में हूँ और वो यहां की सिस्टर इंचार्ज हैं। 

एक नर्स और मरीज़ से कुछ ज़्यादा था हमारे बीच। एक अपनापन, जिसे न पाकर मैं बेचैन हो उठी थी। पर आज जो पता चला, उसने मुझे पूरी तरह बदल दिया। मेरी ज़िन्दगी अब उनकी अमानत है। वो ज़िन्दगी, जिसके बच जाने का मुझे अफ़सोस था। 

तभी दरवाज़े की आहट ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा। जिसका दो दिनों से इंतज़ार कर रही थी... मेरी स्वर्ग की देवी, वो ममतामयी श्रद्धा की मूरत मेरे सामने खड़ी थी पर जाने मेरे सारे शब्द कहाँ गुम गए...!!! क्या कहूँ, क्या पूछूं.... या उनके चरणों में गिर जाऊँ, कुछ सूझ ही नहीं रहा था....!!! 

इतने में वो मेरे पास आकर बैठ गईं। मैं हैरान-परेशान सी बस उन्हें देखे जा रही थी। उनके मुस्कुराते चेहरे ने मुझे मोह-सा लिया और मन अपने-आप ही शांत हो गया। मुझे इस तरह देखकर खुद ही बोलीं - आज मेरी बेटी का जन्मदिन है। 

बोलते-बोलते कुछ उदास हो गईं। फ़िर खुद को संयत करके बोलीं - उसे मालपुए बहुत पसंद थे इसीलिए आज बनाए हैं। 

चखकर बताओ कैसे बने हैं..... हाथ में लिया टिफ़िन खोलकर मेरी ओर बढ़ाते हुए उन्होंने कहा। फ़िर खुद ही बोलीं - लाओ, आज मैं तुम्हें अपने हाथों से खिलाऊं, कहकर एक टुकड़ा मेरे मुंह में डाल दिया। उसे चखते ही मैं फूट-फूटकर रोने लगी। ममता जी घबरा गईं। 

क्या हुआ....रोने क्यों लगी.... क्या तुम्हें मालपुए पसंद नहीं?? 

मुझे मम्मा की याद आ गई। वो भी मुझे ऐसे ही खिलाती थीं... मैं सिसकते हुए बोली।

अन्नी, मेरा बच्चा....बोलते हुए उनका गला रूंध गया। मेरे माथे को चूमकर उन्होंने ज़ोर से मुझे बांहों में भर लिया। जैसे खुद से दूर न करना चाहती हों और मैं भी फ़िर से छः साल की अन्नी बन गई। 

बहुत देर तक वो मुझे ऐसे ही संभाले रहीं। जब मेरा सिसकना बंद हुआ तो उन्होंने अपने हाथों मेरा चेहरा साफ़ किया और बिखरे हुए बाल ठीक किये। तभी मेरी नज़र उनके कोट पर गई जिसे मैंने रो-रोकर गीला कर दिया था।

साॅरी, मेरी वजह से आपकी ड्रेस गंदी हो गई।

कोई बात नहीं बच्चा, इतना भी गंदा नहीं हुआ है कि मेरी अन्नी को सॉरी बोलना पड़े। इस बात से हम दोनों ही मुस्कुरा दिये। 

तुमने ये तो बताया ही नहीं कि मालपुए कैसे बने हैं..?? 

बहुत ही स्वादिष्ट हैं। इन्हें चखकर लगा जैसे अमृत चख लिया हो। 

बस-बस, मुझे चने की झाड़ पर चढ़ाने की ज़रूरत नहीं है। इतना सुनकर मैं खिलखिला कर हंस पड़ी। अचानक दिमाग़ ने याद दिलाया कि अभी हंसना भूली नहीं हूँ और मैं हंसते - हंसते चुप हो गई। 

क्या हुआ अन्नी, चुप क्यों हो गई बच्चा... तुम्हें पता है, तुम हंसते हुए बहुत प्यारी लगती हो, बिल्कुल गुड़िया की तरह। फिर इतना उदास क्यों रहती है मेरी प्रिंसेस...!!! 

हमेशा अपना दर्द छुपा कर रखने वाली मैं, आज पिघलने लगी.... 

मैं, मम्मा और पापा... हमारा छोटा-सा परिवार था। मेरे दो ताऊजी भी थे जो अपने - अपने परिवार के साथ यहां इंडिया में रहते थे। दरअसल पापा एक साइंटिस्ट थे और हम तीनों हांगकांग में रहते थे। जब मैं पांच साल की थी वहां एक महामारी फैली। देखते ही देखते ये बीमारी कई देशों में फैल गई। लोग मरने लगे। हर तरफ़ अफ़रा-तफ़री का माहौल था। दुनिया भर के वैज्ञानिक उस बीमारी का इलाज ढूंढने की कोशिश कर रहे थे। 

मेरे पापा भी इसी कोशिश में लगे थे और कई महीनों की मेहनत के बाद पापा को इसमें कामयाबी मिल भी गई। वो बहुत खुश थे और हम सब भी। अगले दिन जब वो लैब से लौटे तो उनका चेहरा उतरा हुआ था। मम्मा ने पूछा तो पापा ने मेरे सामने कुछ भी न पूछने का इशारा किया। बहुत छोटी थी मैं.... फिर भी पापा की परेशानी ने मुझे परेशान कर दिया था। 

रात को मम्मा - पापा की बातों से मेरी नींद खुल गई। पापा मम्मा को बता रहे थे कि उनकी कंपनी उनसे वैक्सीन का फ़ार्मूला चाहती है ताकि उसमें कुछ फेरबदल करके महंगे दामों  में बाज़ार में उतारा जाए। इससे कंपनी को बहुत ज़्यादा लाभ होगा। जबकि पापा ने जो वैक्सीन बनाई थी, वो बहुत कम दाम में बाज़ार में आती। 

पापा उनकी बात मानने के लिए तैयार नहीं थे इसलिये उनके सीनियर साइंटिस्ट उन्हें धमका रहे थे। पापा को पैसे लेकर मुंह बंद रखने को कहा जा रहा था। ये पापा की सालों की मेहनत का नतीजा था। वो इस तरह के वायरस पर कई सालों से रिसर्च कर रहे थे। मैंने पापा को इतना मायूस पहले कभी नहीं देखा था।

क्यों न हम अपनी बात सीधा यहां की सरकार तक पहुंचाएं। वो ज़रूर समझेंगे - मम्मा ने सुझाव दिया। 

ठीक है... मैं कल सुबह ही जाउंगा। अब सो जाओ। पापा मुझे सीने से लगा कर सो गए। 

सुबह जब नींद खुली तो मैंने मम्मा को आवाज़ लगाई। जब वो काफ़ी देर तक नहीं आईं तो मैं बाहर निकली। सोफ़ा के पास मम्मा - पापा ज़मीन पर गिरे पडे़ थे। मैं भागकर पास गई तो देखा कि पापा का पूरा चेहरा खून से लाल था और मम्मा का गला खून से सना था। मैंने उन्हें उठाने की बहुत कोशिश की पर वो नहीं उठे.... कहते हुए मैं फिर से सिसकने लगी। 

चुप हो जा मेरा बच्चा.... वो मेरे आंसू पोंछने लगीं। 

जिस ममता की छांव से मैं महरूम थी, आज मिली तो दिल ने चाहा कि उसे जी भर के महसूस करूं इसलिए उनकी गोद में सर रखकर लेट गई। हम दोनों ही अधूरे थे इसीलिये शायद एक-दूसरे को पूरा कर रहे थे। इन पलों ने हमें सुकून से भर दिया था। वो सुकून, जिसकी हमने उम्मीद ही छोड़ दी थी। वो इतने प्यार से मेरा सर सहला रही थीं कि मुझे नींद आ गई। 

अन्नी.... उठ जाओ प्रिंसेस। देखो सुबह हो गई है... एक प्यारी सी आवाज़ मुझे उठा रही थी। 

मम्मा.... क्या मैं आपको मम्मा बुला सकती हूँ प्लीज़...!!! 

हाँ प्रिंसेज, मैं मम्मा ही तो हूँ तुम्हारी.... मेरा सर सहलाते हुए कहा उन्होंने और मैं बच्चों की तरह उनसे लिपट गई। 

तभी मेघना सिस्टर हड़बड़ाते हुए कमरे में आईं। सिस्टर, पूरे देश में कोरोना वायरस की वजह से पंद्रह दिनों का लाॅकडाउन लग गया है। 

क्या.... हम मां-बेटी के मुंह से एकसाथ निकला।


अगला भाग यहां पढ़ें 👈


✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️

Monday, 14 September 2020

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 4) 🌺🌺

पिछला भाग यहां पढ़ें 👈


दो दिन हो गए पर ममता सिस्टर दिखाई न दीं। आमतौर पर वो 3-4 चक्कर लगा ही लेती थीं मेरे रूम के। कहीं मेरा उनकी बेटी के बारे में पूछना उन्हें बुरा तो नहीं लग गया...!!! 

मैं भी कितनी बुद्धू हूँ। खुद मुझे पसंद नहीं कि कोई मेरे जीवन की बखिया उधेड़े तो क्या ज़रूरत थी उनके निजी जीवन के बारे में पूछ-ताछ करने की...!!! ये सोचकर खुद पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन फिर ये ख्याल भी मन में आता कि क्या ये इतनी बड़ी ग़लती है...???

एक बेचैनी सी हो रही थी मन में। बिल्कुल वैसे ही जैसे बचपन में सुबह मम्मा को अपने पास न पाकर होती थी। तब ज़ोर - ज़ोर से आवाज़ लगाकर उन्हें अपने पास बुलाती। मम्मा कहीं भी होती, भाग कर मेरे पास आतीं और खूब सारा दुलार करतीं। एक अरसे बाद ये एहसास फिर से मन में जागा लेकिन ये सोचकर खुद को समझाने लगी कि वो भला मेरे लिए ये भाव क्यों रखने लगीं..!!!

इसी उधेड़बुन में थी कि दरवाज़े पर आहट हुई। एकदम से लगा कि ममता सिस्टर होंगी। दरवाज़ा खुला तो देखा, मेघना सिस्टर थीं। मेरी शाम की दवा लेकर आई थीं। अचानक से चेहरे पर आई चमक, उदासी में तब्दील हो गई। जाने कैसे उन्होंने मेरे मनोभाव भांप लिये और हाथ पर लगे वीगो में दवा इंजेक्ट करते हुए कहा - कुछ पूछना है ? 

मैं चौंक गई। क्या मेरा चेहरा मेरी बेचैनी बयाँ कर रहा है..!!! 

मेरी हाथ की नसों को हल्के - हल्के सहलाते हुए वो मुस्कुराईं। 

कुछ कहना चाहती हो..?? 

जी वो ममता सिस्टर नहीं दिखाई दे रहीं दो दिनों से। वो ठीक तो हैं ना... मेरा मतलब छुट्टी पर हैं क्या ??? मैं एक ही सांस में बोल गई। 

सुनते ही वो ज़ोर से हंस पड़ीं। 

मतलब उन्होंने तुम्हें भी अपना दिवाना बना लिया। हमारी ममता दीदी हैं ही ऐसी। जो भी उनसे मिलता है, बस उन्हीं का हो जाता है। 

मैं अभी भी एकटक उन्हें देखे जा रही थी। वो समझ गईं कि ये मेरे सवाल का जवाब नहीं था। 

वो ठीक हैं.... बस थोड़ी उदास हैं। शायद इसीलिए तुमसे मिलने नहीं आईं। 

जी धक् से हो गया कि कहीं मेरी ही वजह से तो नहीं..!!! हिम्मत बांध कर बस इतना ही पूछ पाई - क्यों उदास हैं..?? 

आज उनकी बेटी का जन्मदिन है। हमेशा हंसती-मुस्कुराती रहने वाली ममता दीदी, इन दिनों उदास हो जाती हैं। 

मेरी जिज्ञासा ने ज़ोर मारा। कहाँ है उनकी बेटी सिस्टर...?? 

वो इस दुनिया में नहीं है... एक लंबी सांस भरते हुए मेघना सिस्टर ने कहा। 

क्या... कब, कैसे....??? मेरे मुंह से बेसाख़्ता निकल पड़ा। 

बहुत छोटी थी, जब पैसों की कमी के कारण उसका इलाज नहीं हो पाया और वो चल बसी। 

ममता दीदी ने बहुत दुःख झेले जीवन में... पर ये सबसे बड़ा दुःख था। लेकिन बहुत हिम्मती हैं वो, तभी तो आज यहाँ हैं। अपनी इकलौती औलाद को खो देने के बाद उन्होंने जैसे प्रण ही ले लिया कि वो अपने सामने किसी को भी पैसों की कमी के कारण दम नहीं तोड़ने देंगी। तुम्हारे इलाज का ज़िम्मा भी उन्होंने ही उठाया है।

मैं अवाक् रह गई ये सुनकर। मुझे निःशब्द देख उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा, तब जाकर मुझे कुछ सुध आई। 

तुम्हें एक बात बताऊँ.... ममता दीदी इन दो दिनों में भले ही तुमसे मिलने न आई हों, पर ड्यूटी आने के बाद और जाने से पहले दरवाज़े के कांच से तुम्हें दो पल के लिए ज़रूर देखती हैं।शायद कुछ ख़ास लगाव हो गया है उन्हें तुमसे। 

मैं इस निगाह से उनकी तरफ़ देख रही थी जैसे पूछ रही हूँ - क्या सच में....!!!! 

आज नाईट शिफ़्ट है उनकी। जब वो ओवर लेने आएंगी तो उन्हें बता दूंगी कि तुम उन्हें याद कर रही हो। देखना, बहुत खुश हो जाएंगी.... कहकर मेघना सिस्टर चली गईं। 

उनके जाने के बाद मेरी निगाहें सामने घड़ी पर अटक गईं। आज से पहले घड़ी को इतनी गौर से कभी नहीं देखा था। ये सेकेंड की सुई इतने धीरे कब से चलने लगी... और एक मिनट तो जैसे पांच मिनट में बीत रहा था। कब आठ बजेंगें और कब वो दया की मूर्ति मुझे दर्शन देगी...!!!

जैसे - तैसे करके एक घंटा बीता। घड़ी की सुईयों के आठ बजाते ही मेरी आंखें दरवाज़े पर टंग गईं। वो ड्यूटी पर आएंगी तो ज़रूर मुझे देखने आएंगी.... दो पल के लिए ही सही। तभी कांच के उस पार मुझे दो आंखें दिखीं। मुझे अपनी ओर देखते जान वो आंखें पहले तो कुछ पीछे हुईं और फिर ओझल हो गईं। क्या ये वही थीं....!!!! 


अगला भाग यहां पढ़ें 👈


✍✍️ प्रियन श्री ✍️✍️

Friday, 4 September 2020

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 3) 🌺🌺

पिछला भाग यहां पढ़ें 👈


कहां खोई हुई हो, देखो तो तुमसे मिलने कौन आया है !!! 

वापस हक़ीक़त की दुनिया में खींचती ये आवाज़ थी यहां की सिस्टर इंचार्ज ममता जी  की... मेरी सफ़ेद कपड़ों वाली स्वर्ग की देवी। नज़र घुमाई तो देखा, मेरे बाॅस और कुछ सहकर्मी गुलाब के फूलों का गुलदस्ता और कुछ फल लिए सामने खड़े थे।

आपको होश में देखकर बहुत अच्छा लग रहा है वर्ना तो काफ़ी डर गए थे हम सब। अब कैसी तबियत है आपकी..!!! मेरे बॉस रवींद्र नाथ जी ने पूछा। 

जी ठीक हूँ... आप सब का शुक्रिया, पर इन सबकी ज़रूरत नहीं थी। 

कैसी बात कर रही हैं अनाहिता जी...!!! भले ही आपको ज़्यादा वक्त नहीं हुआ हमारे साथ काम करते हुए, मगर फिर भी आप हमारे कार्यालयी परिवार का हिस्सा हैं। 

अब भई हम तो मानते हैं, आपका पता नहीं.... ठहाके गूंज उठे उस नीरस से कमरे में। 

चंचला मैडम बिल्कुल सही कह रही हैं। अब बस आप जल्दी से ठीक होकर कार्यालय ज्वाइन कर लीजिए। 

सिस्टर, कब तक डिस्चार्ज हो जाएंगी अनाहिता जी... मिलिंद सर ने पूछा। 

बस एक हफ़्ते की मेहमान हैं ये हमारे यहाँ। उसके बाद आप अपनी अमानत ले जा सकते हैं। 

थैंक्यू सिस्टर, किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो प्लीज़ बताईयेगा। अच्छा अनाहिता, हम लोग आते रहेंगे। Get well soon.... रवींद्र नाथ जी ने कहा। 

बहुत जिंदादिल लोग हैं, है ना... सबके जाने के बाद सिस्टर ने कहा। 

हम्म्म.... 

तुम इतनी उदास और गुमसुम क्यों रहती हो..??? 

खुशी किस बात की मनाऊँ सिस्टर...!!! 

इतने बड़े हादसे से तुम बच गई। ये क्या कम बड़ी बात है ?? 

काश कि बचती ही ना.... 

ऐसा नहीं कहते। ईश्वर ने तुम्हें नया जीवन दिया है तो ज़रूर उसका कुछ मक़सद होगा। 

अब तक की ज़िन्दगी तो बेमक़सद ही थी। अब क्या बदल जाएगा...!!! 

अभी तुमने ज़िंदगी जी ही कितनी है, जो ऐसा कह रही हो..?? 

इस छोटे से जीवन में ही इतना सब देख लिया है सिस्टर कि अब और कुछ बचा ही नहीं देखने को। घर - परिवार, नाते - रिश्तेदार.... सबकी असलियत तो जान चुकी हूँ। 

ज़िंदगी सिर्फ़ खुद के लिए जीने का नाम नहीं है। उनके लिए जियो, जिनका कोई नहीं है। दुनिया में केवल तुम ही अकेली नहीं हो अन्नी। 

अन्नी... आप मेरा ये नाम कैसे जानती हैं ??? इस नाम से तो केवल मम्मा - पापा बुलाते थे मुझे। मेरे मन में उत्सुकता जागी और कईयों सवाल दिमाग में घूम गए। 

सिस्टर एक पल को चौंकी फिर शांत हो गईं। 

मैं भी मेरी बेटी को प्यार से अन्नी ही बुलाती थी। दरअसल उसका नाम भी अनाहिता ही था। 

था मतलब...??? मैंने थोड़ा हिचकिचाते हुए पूछा। 

जवाब में सिस्टर बिना कुछ कहे चली गईं और मैं बस उन्हें जाते देखती रही। जाने क्यों इतनी हिम्मत ही नहीं हुई कि उन्हें रोक सकूं। उनकी चुप्पी और उदास होने की वजह पूछ सकूं। 

चेहरे पर खूबसूरत मुस्कान सजाए लोग, दिल में कितना दर्द लेकर चलते हैं... कौन जानता है?? सबकी अपनी कोई-न-कोई कहानी है। मेरी खुद की ज़िन्दगी भी तो एक कहानी बन चुकी है........ 

घर आने के बाद कई दिनों तक मैं इस सदमे में रही। महीनों लग गए, जो हुआ उसे स्वीकार करने में। तब तक मेरी स्थिति चाभी वाली गुड़िया जैसी रही। जैसे - जैसे घर का रूटीन बताया जाता, जानू  को बांह में दबाए... वैसे ही करती जाती। बिना किसी सवाल, संशय और शिकायत के। यहां तक कि मेरे दिमाग ने सोचना भी बंद कर दिया था। हालांकि मुझे सामान्य करने में घर के लोगों ने बहुत मेहनत की। 

घर.... ये मेरे अनाथाश्रम का नाम था। सिर्फ़ नाम से ही नहीं, वो वाकई घर था। मेरे जैसे कई बच्चों का, जो बेघर थे। बाकी बच्चों जैसी सामान्य तो मैं कभी न हो सकी.... पर हां, उस हादसे से आगे बढ़ने में उन्होंने मेरा बहुत साथ दिया। बहुत कम बोलती थी मैं और घुलती - मिलती भी काफ़ी कम थी। शायद इसीलिए कभी किसी ने मुझे गोद नहीं लिया। 

फिर भी कभी किसी चीज़ के लिए मुझे डांटा नहीं गया। मेरा पूरा ख़्याल रखा गया... अच्छी शिक्षा से लेकर हर संभव सुख - सुविधा तक। बहुत धैर्य के साथ उन्होंने मुझे संभाला। मुझमें ये विश्वास जगाया कि मैं भी कुछ हूँ। इस काबिल बनाया कि खुद को संभाल सकूं। 

आज सोचती हूँ तो श्रद्धा से आंखें झुक जाती हैं। अगर उन्होंने भी मुझे ठुकरा दिया होता तो मेरा क्या होता....??? क्या मैं भी सड़कों पर भीख मांगती या देह-व्यापार में ढकेल दी जाती...??? इस सोच से ही मेरे रोएँ खड़े हो गए।


अगला भाग यहां पढ़ें 👈


✍️✍️...प्रियन श्री...✍️✍️

नव सृजन

🌺🌺 नया जन्म - (भाग 11) 🌺 🌺

पिछला भाग यहां पढ़ें 👈 सारी रात घड़ी के कांटों में उलझी रही। आसपास एक घनी चुप्पी ने मौका पाकर अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया था.... पर इस चुप्...

सर्वाधिक लोकप्रिय