मेरे मन ने आश्वासन दिया। हाँ, ये वही देवी थी। कभी-कभी कोई अनजान हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण हो जाता हैै..!!! जब तीन दिन की बेहोशी के बाद मेरी आंखें खुली थीं तो वो मेरे लिए स्वर्ग की देवी थीं। फिर पता चला कि मैं हाॅस्पिटल में हूँ और वो यहां की सिस्टर इंचार्ज हैं।
एक नर्स और मरीज़ से कुछ ज़्यादा था हमारे बीच। एक अपनापन, जिसे न पाकर मैं बेचैन हो उठी थी। पर आज जो पता चला, उसने मुझे पूरी तरह बदल दिया। मेरी ज़िन्दगी अब उनकी अमानत है। वो ज़िन्दगी, जिसके बच जाने का मुझे अफ़सोस था।
तभी दरवाज़े की आहट ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा। जिसका दो दिनों से इंतज़ार कर रही थी... मेरी स्वर्ग की देवी, वो ममतामयी श्रद्धा की मूरत मेरे सामने खड़ी थी पर जाने मेरे सारे शब्द कहाँ गुम गए...!!! क्या कहूँ, क्या पूछूं.... या उनके चरणों में गिर जाऊँ, कुछ सूझ ही नहीं रहा था....!!!
इतने में वो मेरे पास आकर बैठ गईं। मैं हैरान-परेशान सी बस उन्हें देखे जा रही थी। उनके मुस्कुराते चेहरे ने मुझे मोह-सा लिया और मन अपने-आप ही शांत हो गया। मुझे इस तरह देखकर खुद ही बोलीं - आज मेरी बेटी का जन्मदिन है।
बोलते-बोलते कुछ उदास हो गईं। फ़िर खुद को संयत करके बोलीं - उसे मालपुए बहुत पसंद थे इसीलिए आज बनाए हैं।
चखकर बताओ कैसे बने हैं..... हाथ में लिया टिफ़िन खोलकर मेरी ओर बढ़ाते हुए उन्होंने कहा। फ़िर खुद ही बोलीं - लाओ, आज मैं तुम्हें अपने हाथों से खिलाऊं, कहकर एक टुकड़ा मेरे मुंह में डाल दिया। उसे चखते ही मैं फूट-फूटकर रोने लगी। ममता जी घबरा गईं।
क्या हुआ....रोने क्यों लगी.... क्या तुम्हें मालपुए पसंद नहीं??
मुझे मम्मा की याद आ गई। वो भी मुझे ऐसे ही खिलाती थीं... मैं सिसकते हुए बोली।
अन्नी, मेरा बच्चा....बोलते हुए उनका गला रूंध गया। मेरे माथे को चूमकर उन्होंने ज़ोर से मुझे बांहों में भर लिया। जैसे खुद से दूर न करना चाहती हों और मैं भी फ़िर से छः साल की अन्नी बन गई।
बहुत देर तक वो मुझे ऐसे ही संभाले रहीं। जब मेरा सिसकना बंद हुआ तो उन्होंने अपने हाथों मेरा चेहरा साफ़ किया और बिखरे हुए बाल ठीक किये। तभी मेरी नज़र उनके कोट पर गई जिसे मैंने रो-रोकर गीला कर दिया था।
साॅरी, मेरी वजह से आपकी ड्रेस गंदी हो गई।
कोई बात नहीं बच्चा, इतना भी गंदा नहीं हुआ है कि मेरी अन्नी को सॉरी बोलना पड़े। इस बात से हम दोनों ही मुस्कुरा दिये।
तुमने ये तो बताया ही नहीं कि मालपुए कैसे बने हैं..??
बहुत ही स्वादिष्ट हैं। इन्हें चखकर लगा जैसे अमृत चख लिया हो।
बस-बस, मुझे चने की झाड़ पर चढ़ाने की ज़रूरत नहीं है। इतना सुनकर मैं खिलखिला कर हंस पड़ी। अचानक दिमाग़ ने याद दिलाया कि अभी हंसना भूली नहीं हूँ और मैं हंसते - हंसते चुप हो गई।
क्या हुआ अन्नी, चुप क्यों हो गई बच्चा... तुम्हें पता है, तुम हंसते हुए बहुत प्यारी लगती हो, बिल्कुल गुड़िया की तरह। फिर इतना उदास क्यों रहती है मेरी प्रिंसेस...!!!
हमेशा अपना दर्द छुपा कर रखने वाली मैं, आज पिघलने लगी....
मैं, मम्मा और पापा... हमारा छोटा-सा परिवार था। मेरे दो ताऊजी भी थे जो अपने - अपने परिवार के साथ यहां इंडिया में रहते थे। दरअसल पापा एक साइंटिस्ट थे और हम तीनों हांगकांग में रहते थे। जब मैं पांच साल की थी वहां एक महामारी फैली। देखते ही देखते ये बीमारी कई देशों में फैल गई। लोग मरने लगे। हर तरफ़ अफ़रा-तफ़री का माहौल था। दुनिया भर के वैज्ञानिक उस बीमारी का इलाज ढूंढने की कोशिश कर रहे थे।
मेरे पापा भी इसी कोशिश में लगे थे और कई महीनों की मेहनत के बाद पापा को इसमें कामयाबी मिल भी गई। वो बहुत खुश थे और हम सब भी। अगले दिन जब वो लैब से लौटे तो उनका चेहरा उतरा हुआ था। मम्मा ने पूछा तो पापा ने मेरे सामने कुछ भी न पूछने का इशारा किया। बहुत छोटी थी मैं.... फिर भी पापा की परेशानी ने मुझे परेशान कर दिया था।
रात को मम्मा - पापा की बातों से मेरी नींद खुल गई। पापा मम्मा को बता रहे थे कि उनकी कंपनी उनसे वैक्सीन का फ़ार्मूला चाहती है ताकि उसमें कुछ फेरबदल करके महंगे दामों में बाज़ार में उतारा जाए। इससे कंपनी को बहुत ज़्यादा लाभ होगा। जबकि पापा ने जो वैक्सीन बनाई थी, वो बहुत कम दाम में बाज़ार में आती।
पापा उनकी बात मानने के लिए तैयार नहीं थे इसलिये उनके सीनियर साइंटिस्ट उन्हें धमका रहे थे। पापा को पैसे लेकर मुंह बंद रखने को कहा जा रहा था। ये पापा की सालों की मेहनत का नतीजा था। वो इस तरह के वायरस पर कई सालों से रिसर्च कर रहे थे। मैंने पापा को इतना मायूस पहले कभी नहीं देखा था।
क्यों न हम अपनी बात सीधा यहां की सरकार तक पहुंचाएं। वो ज़रूर समझेंगे - मम्मा ने सुझाव दिया।
ठीक है... मैं कल सुबह ही जाउंगा। अब सो जाओ। पापा मुझे सीने से लगा कर सो गए।
सुबह जब नींद खुली तो मैंने मम्मा को आवाज़ लगाई। जब वो काफ़ी देर तक नहीं आईं तो मैं बाहर निकली। सोफ़ा के पास मम्मा - पापा ज़मीन पर गिरे पडे़ थे। मैं भागकर पास गई तो देखा कि पापा का पूरा चेहरा खून से लाल था और मम्मा का गला खून से सना था। मैंने उन्हें उठाने की बहुत कोशिश की पर वो नहीं उठे.... कहते हुए मैं फिर से सिसकने लगी।
चुप हो जा मेरा बच्चा.... वो मेरे आंसू पोंछने लगीं।
जिस ममता की छांव से मैं महरूम थी, आज मिली तो दिल ने चाहा कि उसे जी भर के महसूस करूं इसलिए उनकी गोद में सर रखकर लेट गई। हम दोनों ही अधूरे थे इसीलिये शायद एक-दूसरे को पूरा कर रहे थे। इन पलों ने हमें सुकून से भर दिया था। वो सुकून, जिसकी हमने उम्मीद ही छोड़ दी थी। वो इतने प्यार से मेरा सर सहला रही थीं कि मुझे नींद आ गई।
अन्नी.... उठ जाओ प्रिंसेस। देखो सुबह हो गई है... एक प्यारी सी आवाज़ मुझे उठा रही थी।
मम्मा.... क्या मैं आपको मम्मा बुला सकती हूँ प्लीज़...!!!
हाँ प्रिंसेज, मैं मम्मा ही तो हूँ तुम्हारी.... मेरा सर सहलाते हुए कहा उन्होंने और मैं बच्चों की तरह उनसे लिपट गई।
तभी मेघना सिस्टर हड़बड़ाते हुए कमरे में आईं। सिस्टर, पूरे देश में कोरोना वायरस की वजह से पंद्रह दिनों का लाॅकडाउन लग गया है।
क्या.... हम मां-बेटी के मुंह से एकसाथ निकला।
✍️✍️ प्रियन श्री ✍️✍️