कहां खोई हुई हो, देखो तो तुमसे मिलने कौन आया है !!!
वापस हक़ीक़त की दुनिया में खींचती ये आवाज़ थी यहां की सिस्टर इंचार्ज ममता जी की... मेरी सफ़ेद कपड़ों वाली स्वर्ग की देवी। नज़र घुमाई तो देखा, मेरे बाॅस और कुछ सहकर्मी गुलाब के फूलों का गुलदस्ता और कुछ फल लिए सामने खड़े थे।
आपको होश में देखकर बहुत अच्छा लग रहा है वर्ना तो काफ़ी डर गए थे हम सब। अब कैसी तबियत है आपकी..!!! मेरे बॉस रवींद्र नाथ जी ने पूछा।
जी ठीक हूँ... आप सब का शुक्रिया, पर इन सबकी ज़रूरत नहीं थी।
कैसी बात कर रही हैं अनाहिता जी...!!! भले ही आपको ज़्यादा वक्त नहीं हुआ हमारे साथ काम करते हुए, मगर फिर भी आप हमारे कार्यालयी परिवार का हिस्सा हैं।
अब भई हम तो मानते हैं, आपका पता नहीं.... ठहाके गूंज उठे उस नीरस से कमरे में।
चंचला मैडम बिल्कुल सही कह रही हैं। अब बस आप जल्दी से ठीक होकर कार्यालय ज्वाइन कर लीजिए।
सिस्टर, कब तक डिस्चार्ज हो जाएंगी अनाहिता जी... मिलिंद सर ने पूछा।
बस एक हफ़्ते की मेहमान हैं ये हमारे यहाँ। उसके बाद आप अपनी अमानत ले जा सकते हैं।
थैंक्यू सिस्टर, किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो प्लीज़ बताईयेगा। अच्छा अनाहिता, हम लोग आते रहेंगे। Get well soon.... रवींद्र नाथ जी ने कहा।
बहुत जिंदादिल लोग हैं, है ना... सबके जाने के बाद सिस्टर ने कहा।
हम्म्म....
तुम इतनी उदास और गुमसुम क्यों रहती हो..???
खुशी किस बात की मनाऊँ सिस्टर...!!!
इतने बड़े हादसे से तुम बच गई। ये क्या कम बड़ी बात है ??
काश कि बचती ही ना....
ऐसा नहीं कहते। ईश्वर ने तुम्हें नया जीवन दिया है तो ज़रूर उसका कुछ मक़सद होगा।
अब तक की ज़िन्दगी तो बेमक़सद ही थी। अब क्या बदल जाएगा...!!!
अभी तुमने ज़िंदगी जी ही कितनी है, जो ऐसा कह रही हो..??
इस छोटे से जीवन में ही इतना सब देख लिया है सिस्टर कि अब और कुछ बचा ही नहीं देखने को। घर - परिवार, नाते - रिश्तेदार.... सबकी असलियत तो जान चुकी हूँ।
ज़िंदगी सिर्फ़ खुद के लिए जीने का नाम नहीं है। उनके लिए जियो, जिनका कोई नहीं है। दुनिया में केवल तुम ही अकेली नहीं हो अन्नी।
अन्नी... आप मेरा ये नाम कैसे जानती हैं ??? इस नाम से तो केवल मम्मा - पापा बुलाते थे मुझे। मेरे मन में उत्सुकता जागी और कईयों सवाल दिमाग में घूम गए।
सिस्टर एक पल को चौंकी फिर शांत हो गईं।
मैं भी मेरी बेटी को प्यार से अन्नी ही बुलाती थी। दरअसल उसका नाम भी अनाहिता ही था।
था मतलब...??? मैंने थोड़ा हिचकिचाते हुए पूछा।
जवाब में सिस्टर बिना कुछ कहे चली गईं और मैं बस उन्हें जाते देखती रही। जाने क्यों इतनी हिम्मत ही नहीं हुई कि उन्हें रोक सकूं। उनकी चुप्पी और उदास होने की वजह पूछ सकूं।
चेहरे पर खूबसूरत मुस्कान सजाए लोग, दिल में कितना दर्द लेकर चलते हैं... कौन जानता है?? सबकी अपनी कोई-न-कोई कहानी है। मेरी खुद की ज़िन्दगी भी तो एक कहानी बन चुकी है........
घर आने के बाद कई दिनों तक मैं इस सदमे में रही। महीनों लग गए, जो हुआ उसे स्वीकार करने में। तब तक मेरी स्थिति चाभी वाली गुड़िया जैसी रही। जैसे - जैसे घर का रूटीन बताया जाता, जानू को बांह में दबाए... वैसे ही करती जाती। बिना किसी सवाल, संशय और शिकायत के। यहां तक कि मेरे दिमाग ने सोचना भी बंद कर दिया था। हालांकि मुझे सामान्य करने में घर के लोगों ने बहुत मेहनत की।
घर.... ये मेरे अनाथाश्रम का नाम था। सिर्फ़ नाम से ही नहीं, वो वाकई घर था। मेरे जैसे कई बच्चों का, जो बेघर थे। बाकी बच्चों जैसी सामान्य तो मैं कभी न हो सकी.... पर हां, उस हादसे से आगे बढ़ने में उन्होंने मेरा बहुत साथ दिया। बहुत कम बोलती थी मैं और घुलती - मिलती भी काफ़ी कम थी। शायद इसीलिए कभी किसी ने मुझे गोद नहीं लिया।
फिर भी कभी किसी चीज़ के लिए मुझे डांटा नहीं गया। मेरा पूरा ख़्याल रखा गया... अच्छी शिक्षा से लेकर हर संभव सुख - सुविधा तक। बहुत धैर्य के साथ उन्होंने मुझे संभाला। मुझमें ये विश्वास जगाया कि मैं भी कुछ हूँ। इस काबिल बनाया कि खुद को संभाल सकूं।
आज सोचती हूँ तो श्रद्धा से आंखें झुक जाती हैं। अगर उन्होंने भी मुझे ठुकरा दिया होता तो मेरा क्या होता....??? क्या मैं भी सड़कों पर भीख मांगती या देह-व्यापार में ढकेल दी जाती...??? इस सोच से ही मेरे रोएँ खड़े हो गए।
✍️✍️...प्रियन श्री...✍️✍️
अति उत्तम....waiting for next part....👌👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद 😊🙏
Deleteबहुत खूब 👍🙏🙏
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏🙏🙏
DeleteVery good ��
ReplyDeleteधन्यवाद 🤗 🙏
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏🙏
ReplyDeleteSri needs no comments she is a blessed writer
ReplyDeleteज़र्रानवाज़ी का बहुत - बहुत शुक्रिया 🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर लेखनी।
ReplyDeleteबहुत - बहुत शुक्रिया 🙏🙏
DeleteGood
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
DeleteHeart touching story❤
ReplyDeleteHarsh parmar
धन्यवाद हर्ष जी 🙏
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